Monday, May 26, 2014

सृजन का मक्सद है समृद्धि मानवता की

सुनता नहीं  जब दिमाग की बात दिल हो जाता है बेलगाम
बह कर इच्छा के आवेग में कर बैठता है आत्मघाती काम
वैसे तो होते नहीं अलग-अलग दिल-ओ-दिमाग के मुकाम
दोनों की द्वंद्वात्मक एकता है देती मानव क्रीड़ा को अंज़ाम
ज़िंदगी का वजूद है सबूत है कि निरंतर है क्रियाशीलता
बनती हैं काम वे क्रियाएं टपके जिनसे सृजनशालता
स्वांतः सुखाय सृजन है बर्बादी दुर्लभ प्रतिभा की
सच्चे सृजन का मक्सद है समृद्धि मानवता की
(27.05.2014)

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