Saturday, May 3, 2014

लल्ला पुराण 150

खुश रहिए पुष्पा जी. अब सही बातों का समझ की फेर के चलते गलत असर पड़े तो भी कहना जारी रखूंगा. संस्कारों की जड़ता टूटने में पीढ़ियां लग जाती हैं. तमाम लड़कियां प्यार का गला घोटकर मां बाप के गाड़े खूंटे से भाग्य समझ बंध जाती हैं. लेकिन जैसे जैसे समभाव की चेतना जगती है, वे खूंटे उखाड़ना शुरू कर देती हैं. लेकिन सही बात में सच्चाई है तो कभी-न-कभी असर पड़ेगा ही और मुझे पूरा यक़ीन है कि इस पर एकाध लाइक बटन जरूर दबेगा. एक और बात कौन किसे अच्छा लगता है यह उसका निजी मामला है हम लोग छात्र जीवन में इस तरह के लगाव को लिजलिजी भावुकता कहते थे क्योंकि इसमें विवेक नहीं शामिल होता. मैं सारे मोदी भक्तों से एक सवाल करता हूं कि वह अंबानी-एडानी के इस राजदुलारे का एक वाक्य या कृत्य उधृत कर दे जो इसे उनका आराध्य बनाता है (वैसे आस्था में तर्क और विवेक की गुंजाइश नहीं होती और विवेक ही मनुष्य को पशुकुल से अलग करता है) तो मैं भी 40-42 साल की नास्तिकता छोड़ मोदी भक्त हो जाऊंगा. विवेकविहीन आस्था मनुष्यता और पशुता के फर्क को खत्म कर देती है. Don't take it personally.

No comments:

Post a Comment