Sunday, May 11, 2014

शिक्षा और ज्ञान 5


Sumant Bhattacharya  भविष्य की क्रांतियों की रूपरेखा का प्रपंच वर्तमान के संघर्षों से कटने और विचलित करने का बहाना और साज़िश है, हर अगले पैराडाइम का भ्रूण पिछली व्वस्था में तैयार होता है. समीक्षा में विकल्प की संभावनाएं अंतर्निहित होती हैं. बाकी कुठ काम करने के बाद इस पर विस्तार से लिखूंगा. शासकवर्ग अपने आंतरिक, ज्यादातर कृतिम गौड़ अंतरविरोधों को दुनिया के अंतिम अंतर्विरोध के रूप में पेश करता है कि समाज के मूलभूत अंतर्विरोध की धार कुंद हो सके. मेरा कमेंट फिर से पढ़ो, कॉंग्रस और भाजपा का अंतर्विरोध, अमेरिकी साम्राज्यवाद के 2 क्षत्रपों का आपसी अंतर्विरोध है जिसे शासकवर्ग के विचारधारात्मक औजार राष्ट्रीय अंतर्विरोध साबित कर रहे है. सुमंत पहले यथास्थिति को समझने की जरूरत है तभी तो वैकल्पिक ढांटा बन सकेगा.

Mukesh Kumar  मित्र आपकी बीत पर एक लंबा कमेंट लिखा लेकिन कम्यूटर हैंगअप हो गया और जबरदस्ती बंद करने से वह गायब हो गया. हर मंट की अपनी सीमित उपयोगिता है और छोटी छोटी नदियां मिलकर महानदी का निर्माण करती हैं. अपना काम है जनवादी सामाजिक चेतना के निर्माण प्रसार में अपनी सीमाों में योगदान. न करके भी क्या करलूंगा. शब्दों का असर होता ही है. न्यूटन के नियम के अनुसार जड़ता तोड़कर आंतरिकप्रतिरोध से अधिक वाह्यबल से ही वस्तु को गति मिलती है, वाह्यबल में वृद्धि की आवश्यकता है और आने वाली पीढ़ियां तेजतर होती हैं, इतिहास की गाड़ी में बैक गीयर नहीं होता. मैं एक बार एक हॉस्टल का वार्डेन था (अगर कभी आत्म कथा लिखा तो वे 3 साल काफी जगह खा जायेंगे. मैंने कई नैतिकतागत नीतियों की पहल का प्रस्ताव रखा तो प्रिंसिपल और उनके हॉस्टल कमेटी के कई सदस्यों ने कहा कि गधे को रगड़कर घोड़ा नहीं बनाया जा सकता. मेरा जवाब था, मेरा काम है रगड़ना क्या पता कोई बन ही जाय. ज्यादातर बन गये क्योंकि वे गधे थे ही नहीं. हमारे बच्चे विवेकसंपन्न इंसान हैं, हम उनकी प्रतिभा और आदर्श को कुंद करने की बजाय धारदार बनाने में मददगार हो सकें तो काफी है. पचान थोपने की कोई शिकायत नहीं मैं तो अपनी पहचान का पोस्टर गलाकर घूमता हूं. उनकी गालियां काम्प्लीमेंट हैं क्योंकि यह इस बात का द्योतक है कि उनकी सांस्कृति संरचना को शॉक लगा है, लातार शॉक से बदलाव आता है . जारी........

Sumant Bhattacharya  कितनी सरल भाषा मुझे लगता है अभिव्क्ति की मेरी  सीमाओं के चलते जटिल हो गयी. 1. इतिहास की गति ज्योतिष से नहीं निर्धारित होती, प्रकृति के द्वंद्वात्मक नियमों से होती है. हमें फौरी और दूरगामी उद्देश्यों में समानुपातिक सामंजस्य स्थापित करने की आवश्यकता होती है. आदिम साम्यवाद के अंत के बीज उसी व्यवस्था में बोए गये, यही बात दास-प्रथा और सामंत के बारे में लागू होते हैं और पूंजीवाद के भी. जो भी अस्तित्ववान है उसका अंत निश्चित है. इसीलिए हमें सामाजिक चेतना के परिप्रेक्ष्य में और उसे लगातार जनवादी बनाने के प्रयासों के साथ मौजूदा संघर्षों में अपनी भूमिका को अंजाम देते रहें. अगली बात अगले कमेंट में.....

Sumant Bhattacharya 2.मैंने 1988 में सीनियर बुश के अंतरंंग दूत, हथियारों के अंतरराष्ट्रीय तस्कर, अदनान खसग्गी के स्वागत में  उस समय भाजपा की राजमाता विजय राजे सिंधिया के ब्लू आइड ब्वाय जेके जैन ने सिंधया विल्ला स्थित जैन स्टूडियो में एक बव्य पार्टी किया उसमें भारत के सभी हूज हू -- राजीव गांधी, चंद्रशेखर, दिवीलाल, मुलायम.आडवानी, अरउण जिटलीू..--  मौजूद थे . मैंने उस समय कॉर्सश में लेख लिखा था कन्वर्जेंस ऑफ इन्टरेस्ट्स.   जारी.

ब्रजभूषण झा  मित्र मैं विज्ञान का विद्यार्थी था, सोचता था लेखक किसी अन्य ग्रह का प्राणी होता होगा. बचपन में तो सोचा भी नहीं था कि मैं लेखक हो सकता हूं. मैं अपनी समझ से सरल संप्रेषणीय भाषा में लिखने की कोशिस करता हूं, उसका जटिल लगना मेरी असफलता है, सुधार की कोशिस करूंगा.किसी राष्ट्रीय दैनिक में संपादकीय पृष्ठ के लिए जब पहली बार शिक्षा के तत्कालीन हालात पर एक लेख लिखने की सोचा तो कई दिन लग गये लिखने की हिम्मत जुटाने में. 5वां ड्राफ्ट फािनल करके 5-6 लोगों को पढ़ाया फिर भी गुणवत्ता के प्रति आश्वस्त नहीं हुआ और दूसरे नाम से भेजा. छपने के बाद लोगों ने जब पसंद किया तब जाकर विश्वास हुआ कि लेखक भी मेरे जैसा ही साधारण इंसान होता है. मैं तो यार बहुत सरल-साधारण इंसान (आम आदमी, हा हा) हूं. जो समझ में आता है, प्रेषित करने की कोशिस करता हूं. सुमंत ने कहा था कि मैं आलोचना करता हूं विकल्प नहीं देता, उसके जवाब में मैंने कहा था कि पहले तो यथास्थिति की अवांछनीयता पर सहमति और जनमत बने, विकल्प संघर्ष के विमर्श से निकलेगा. और एक सार्तक आलोचना में विकल्प की संभावनाएं अंतर्निहित होती है. दूसरी बात मैंने कहा कि समाज के मुख्य अंतरविरोध -- आम आदमी और साम्राज्यवादी भूमंडलीय पूंजी का अंतरविरोेेध -- की धार को कुंद करने के लिए शासक वर्ग अपने आंतरिक, गौड़, ज्यादातर कृत्रिम अंतरविरोधों को राष्ट्रीय राजनैतिक अंतरविरोध के रूप में प्रचारित किया जाता है. शासक वर्ग के दलों के बीच खुलेआम आवाजाही कसे सौहार्दपूर्ण संबंधों से ही इनके अंतरविरोधों की गहनता का अंदाज़ लगाया जा सकता है. साम्राज्यवादी पूंजी की दलाली में भाजपा और कांग्रेस एक दूसरे के संपूरक और लहयोगी रहे हैं. SEZ विधेयक सर्वसम्मति से बिना विमर्श पास हो गया था. इन पार्टियों में वही फर्क है जो मोंटेक आलूवालिया और मोंटेक आलूवालिया या चिदंबरम् और चिदांबरम् में है. हर व्यवस्था के विनाश के बीज उसी व्यवस्था में पड़ते हैं अपने अंतरविरोधों से उत्पन्न संकट के रूप में. लेकिन उन्हें खाद पानी के लिए वाह्य कारक की जरूरत होती है. पूंजीवाद के अंत के अर्थों में वह कारक है जनवादी चेतना से लैस मजदूर वर्ग. श्रम के साधनों के लिए पूंजीपति वर्ग पर निर्रता के अर्थों में मजदूर परिभाषा से ही अपने आप में एक वर्ग हैले किन अपने लिए वह तभी वर्ग बन सकता है जव वर्गहितों की समझ के आधार जनवादी  वर्ग चेतना के साथ संगठित हो. य़ह चेतना ही अपने आप में और अपने लिए वर्ग के बीच  चेतना की गुणवत्ता बहुत गहरी खाई है. शासक वर्ग राज्य के सभी वैचारिक औजारों और ज़रखरीद बुद्दजीवियों की मदद से इस खाई को गहरी करता है और मेहनतकश वर्ग का जैविक बुद्धिजीवी कामयाबी के विश्वास के साथ उसे पाटने की कोशिस करता  है.


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