T.n. Tiwari खुश रहिए. मैंने कहां माना नहीं कि मेरा कलम तेजाबी है? "कलम भले तेजाबी दिखता होे ". दर-असल हवा को पीठ न देना या लीक से हटना यथास्थिति को मान्य नहीं, क्योंकि इससे उसके औचित्य पर ही प्रश्न लग जायेगा.दर-असल, शिष्टता मनुष्य में पाखंड का संचार करती है. लोग दिखना वह चाहते हैं जो होते नहीं -- सार और स्वरूप का साश्वत अंतर्विरोध -- और कई चतुर लोग इसमें सफल भी हो जाते हैं. हम सब साधारण इंसान हैं और असाधरण दिखने की कोशिस करते हैं, कई चतिर लोग सफल भी हो जाते हैं. असाधरणों में साधारण एक असाधरण बात है. मैंने किशोर वय में ही संस्कारों के साथ शिष्टाचार की भी अाहुति दे दी. स्वैच्छिक अशिष्टता के काफी खामियाजे भुगते हैं और भुगत रहा हूं. लेकिन ये खामियाजे पाखंड से मुक्ति के आनंद से काफी कमतर हैं. आक्रामक भाषा का प्रयोग कई बार जानबूझ कर करता हूं, कई बार उल्टा पड़ जाता है. लेकिन यह तो खेल है. कई बार आवेश में किशोरों का तरह आक्रमक भाषा का प्रयोग कर जाता हूं, उससे मैं पल्ला नहीं झाड़ता बल्कि आत्मालोचना करता हूं और भूल का आकार विकराल हुआ तो शर्मिंदगी महसूस करता हूं. शर्म एक क्रांतिकारी एहसास है. मैं दर-असल, सत्यम ब्रूयात.... वाले श्लोक की दूसरी पंक्ति ऐसा भूला कि कभी याद ही नहीं आती. हा हा. जो भी बात संस्कारगत अंतिम सत्य और अंतिम नैतिकता पर आघात करती है वह कड़वी लगेगी, मन की मिठास शब्दों में कड़वी लग सकती है क्योंकि यह एक अपरिचित किस्म की मिठास है और अपरिचित तथा अनजाने नये का भय हमें संस्कार में मिलता है जिसे हमारी शिक्षा निखारती है. हम सिद्धांत में अन्वेषण का दावा करते हैं व्यवहार में, अनुशासन और आज्ञाकारिता के नाम पर बच्चों की अन्वेषक प्रवृत्ति को कुंद करते हैं. लेकिन इतिहास की तरंगें अंततः इन बांधों का अतिक्रमण कर आरे बढ़ती हैं, संस्कारों और शिक्षा के चलते नहीं, उनके बावजूद.
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