Tuesday, May 13, 2014

मोदी विमर्श 30

 In a group on a poetry-post of mine शुषमा विहीन टेलीविज़न some young Modiites threatened of "16th May"  with abusive tone and connotation as is Sanghi wont. My reply:

Get out of mentality of parrot and sheep, apply your mind without that there is no difference from animals. Sanghis have nothing to say except repeating like parrots "16th May" and following like sheep exhibiting vulgar sense of language learned in their upbringing and and obnoxious Sanghi training. So what if the paid agent of Ambani-Adani, becomes PM due to high percentage of educated duffers in this country? The campaign against the fascist design and crony capitalism shall go on unabated. sanghis do not read history otherwise they would know that fascists meet a miserable end. Apply your mind and get out of animal kingdom as it is the application of mind that distinguishes humans from animal kingdom,. don't obliterate that distinction, otherwise its your democratic choice to remain in or leave the animal kingdom. Good luck. celebrate another 2 days of Modi's PMship.

मुझे मोदियाये सकच्छ औक निष्कच्छ संघियों से भाषा की तमीज़ की सनद नहीं चाहिए. जो व्यक्ति (जेटली) बीबी छोड़कर शादीशुदा स्टेटस छिपाने को त्याग और राज्य मशीनरी का इस्तेमाल करके किसी लड़की का पीछा करवाने को राजधर्म बताये, तो इस कृत्य को किस श्रेणी में रखा जायेगा? वैसे आपकी भावनायें आहत हुईं तो कमीना शब्द हटा दिया. जो राजनेता (आडवाणी) सामाजिक न्याय(मंडल) की हवा निकालने के मक्सद से करोड़ो के खर्ट से रथयात्रा निकाले और मुल्क में फिरकापरस्ती की नफरत फैलाये जिसकी परिणति बाबरी विध्वंश और अमानवीय दंगों में हो, जिसे यह तक नहीं मालुम कि नफरत का माहौल देश की तरक्की के लिए हानिकारक है और इंसान को बौना करके कोई भी राष्ट्र महान नहीं बन सकता, उसे क्या कहेगे? आहकी आहत भावनाओं को देखते हुए मैंने ज़ाहिल की जगह धर्मोंमादी कर दिया है.

 साहित्य और जंग (चुनावी ही सही) में rhetoric और  polemics स्वीकृत विधायें हैं. सदिक्षा के कारण आप का कयास है मोदी के 2 लाख मतों से जीतने का उनहीं कारणों से मेरा कयास है मोदी के हारने का. चुनाव खत्म हमारे कयासों की प्रासंगिकता खत्म. मोदी हारें या जीतें फासीवादी मंसूबों के विरुद्ध हमारी जंग जारी रहेगी. ऊपर की बातों ें व्यंग्य के अलावा मुझे तो कोई हल्कापन नहीं दिख रहा है. वौसे आदमी ही हल्का हूं. 46 किलो का. 
गुजरात भूकंप के पैसे संघी यनजीओ की झोली में गये और उससे त्रिसूल तलवार खरीदे गये. संघियों की न पढ़ने की आदत के चलते अपना भी साहित्य नहीं पढ़ते. आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि मैंने भी राजनैतिक जीवन की शुरुआत संघी प्रशिक्षण से ही किया और दिमाग बंद करके उसी राह पर चलता तो सांसद होता. आपका संपर्क मुरला मलोहर जोशी या उरुण जेटली या इलाहाबाद के किसी पुराने संघी हो से पूछ लीजिए. अगर आप दिवि के आस-पास रहते हैं तो मैं आपको 1987 में छपा अपना एक शोध-पत्र की फोटोकॉपी दे सकता हूं जिसमें मैंने संघ और जमात-ए-इस्लामी के सारे उपलब्ध साहित्य का अध्ययन किया है, गोलवलकर का बंच ऑफ थॉट और वि एंड आवर नेहुड डिफाइंड तथा दीनदयान की इन्टेग्रल ह्यूमनिज्म समेत. वि एंड आवर नेहुड डिफाइंड में गोलवल्कर जी उसी तरह उत्तरी ध्रुव को बिहार-उड़ीसा में बताते हैं जुस तरह मोदी जी तक्षशिला को बिहार में. 

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