Yogesh Pratap Singhविमर्श तो पहले ही आपने विकृत कर दिया, जो भी विवेकशील व्यक्ति होता है उसका दुनिया को देखने-समझने-बदलने अपना एक परिप्रेक्ष्य और सामाजिक तथा बौद्धिक सरोकारो के पर्ति वैचारिक प्रतिबद्धता होेती है. वैचारिक प्रतिबद्धता गहन अध्ययन-अनुभव-चिंतन-मनन का परणाम होता है गिरोहबाजी का नहीं. गिरोहबाजी वैचारिक रूप से दिवालिए, बिनपेदे के लोटे करते हैं जो तर्कशीलता के अभाव में निजी आक्षेप, फतवेबाजी, भेंड़गीरी और तोतागीरी करते हैं.जैसे कला के लिए कला एक कलात्मक अपराध है वैसे बहस के लिए बहस एक विमर्शगत अपराध है. कई पोंगापंथी मार्क्स के भूत से ऐसे आक्रांत रहते हैं कि न्याय और मानवाधिकार की कोई ङी बात चल रही हो वे मार्क्स-मार्क्स अभुआने लगते हैं. आइए स्वस्थ-सार्थक विमर्श की परंपरा डालें.
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment