Wednesday, May 7, 2014

लल्ला पुराण 151

Dinesh Kumar Verma यहां जनतंत्र  ऐसे ही है जिसे भी किसी संवैधानिक पद पर बैठने का मौका मिलता है वहह उसे बाप की जागीर समझ लेता है. आम तौर पर वैचारिक दिवालिएपन के शिकार (उक्त मामले में मोदियापे के मरीज) भयग्रस्त, वैचारिक कायर और बौद्धिक असुरक्षा के शिकार होते हैं, उनपर क्रोध नहीं तरस खाने की आवश्यकता है. इलाहाबाद अल्युमनी सभी पूर्व छात्रों का मंच होना चाहिए लेकिन ऐडमिन उसे बाप की जागीर समझ लेते हैं. दर-असल ये बंदबुद्धि जाहिल खुद तो मानसिक जड़ता और दुर्बुद्धि के शिकार होते हैं और डरते हैं कि जिन्हें इन्होने अपनी जहालत से प्रभावित कर रखा है वे इनकी ज़हालत समझ न जायें. हरिप्रकाश पोंडेय नामक एक संघी जाहिल है और एक स्तुति सिंह नामक मूख किस्म की तानाशाह है. कई लड़के लड़कियां मेरी बातों से प्रभआवित होने लगे थे जिन्हें संघी कूपमंडूकता में अब बांधा नहीं जा सकता. एक मार्कंडेय पांडेय नामक संघी है उसने आग्रह करके मित्रता ली और उसकी संघी पोस्टों पर मैं कबाड़ा करने लगा और उसका आभामंडल बेनकाब होने लगा तो शायद ब्लॉक कर दिया. जिस पोस्ट के बाद चोरी से निकाल दिया उस पर 80-85 लाइक बटन दबे थे और 3-4 जाहिल संघी गाली गलौच कर रहे थे मैं शिष्ट भाषा में जवाब दे रहा था. इनकी चिंता नहीं है कुछ लड़के-लड़कियों से उम्मीद बनी थी, इन कायरों ने ग्रुप में घोषित ही नहीं किया होगा विद्रोह के डर से. यह होता है विचारों का आतंक. शायद शैलेंद्र भी ऐडमिन में हैं.

आरक्षण के विरोध में कमंडल लेकर कौन चला था अडवानी के साथ. नीच हरकतें करने वाला अंबानी का जरखरीद फेकू देश की एकमात्र नीच जाति आरयसयस का सदस्य.है फेंकू के भक्त भी उसकी नीचता में शामिल हैं, अंबानी-अडानी की दलाली में इन्हें हिस्सा देता हो नहीं. मोदियापा लाइलाज मानसिक बीमारी है इसमें इंसान पूरी तरह मानसिक दिवालिया हो जाता है. चुनावी फायदे के लिए जो कमीना जनसंहार-बलात्कार का आयोजन कर सकता है वह आरक्षण विरोधी मेनिफेस्टो के बावजूद नीच जाति का होने की नौचंकी कर रहा है. आज उफ्र में जहां जहां चुनाव हुए वहां अच्छे दिन के लक्षण नहीं दिखे, बनारस भी बीबी छोड़कर सीटियाबाजी करने वाले इस लंपट को इस लंपट को औकात दिखाएगा.

Namo Asm Namo Namo  Firstly I have deleted the comment that was an instant reaction in the heat of the moment matching with the "aesthetics" of your sense of language which you used for me, that I should not have,, and apologize for that. In instant reactions some times I forget that I was a teenager decades away, impulsively. In fact language is part of language and whether you talk in the same language to even your father and should have stopped  at that, if at all. LEKIN GUSSE MSN ADAMI DIMAG KSE SATH DIL SE BHI SOCHNE LGTA HAI. Notwithstanding the vfasct that one's sense of language is product of one's socialization, yet I must have refrained  that, I sincerely feel and believe with conviction that in mutual discourse, there should be no bitterness (except for the bitter truths), if at all one looses temper the target should be the person concerned and not the father/mother or son/daughter. I feel ashamed for having written that and publicly apologize to the participants in general and to you in particular. Let us all maintain a decorum of discourse, if at all. And Mr. you improve your Sanghi sense of abusive language and rumor based sense of history. I have said it on the basis of facts and logical arguments in conformity with the Forensic report that Godhra was stage managed to carry on the pogrom for communal polarization to harvest the electoral crop. bye bye.

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