Sunday, May 25, 2014

शिक्षा और ज्ञान 8

संस्कार और सामाजिक-मूल्य तथा नैतिकताएं जो हम जन्म की जीववैज्ञानिक दुर्घना के परिणामस्वरूप, सचेत आकांक्षा से नहीं, खास ढंग के सामाजीकरण और रीत रिवाजों के परिणाम स्वरूप अंतिम सत्य के रूप में आत्मसात कर लेते हैं, उसे विरासित की नैतिकता या नैतिकता की विरासत पहा जा सकता है. मैंने किशारावस्था में ब्राह्मणोचित संस्कारों और ब्राह्मणवादी मूल्यों और धार्मिक आस्थाओं की  आहुति देकर नास्तिकता का चयन किया और विरासत की नौतिकता को विवेक सम्मत नैतिकता से प्रतिस्थापित कर दिया.

कैसी संतुष्टि? मुझे संतुष्टि नहीं बेचैनी की तलाश है. हा हा. विवेक मनुष्य को पशुकुल से अलग करता है और उसका काम है सवाल पूछना और उसी को सत्य मानना जो प्रमाणित हो सके. सभी समाज अपनी ऐतिहासिक जरूरतों के हिसाब से अपने मुहावरे और धर्म तथा देवी-देवताओं का अवधारणाएं गढ़ते हैं. समतामूलक रिग्वैदिक समाज में उनकी समझ से परे सिर्फ प्राकृतिक शक्तियां ही दैवीय थी. समाज के वर्गविभाजन के औचित्य के लिए ब्रह्मा-विष्णु-महेश जैसी नई दैविक शक्तियों की अवधारणा गढ़ी गयी.

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