Sunday, May 4, 2014

शब्द जाल

कई बार सोचा लिखने को एक कविता
इस मनमोहक तस्वीर पर
आंखों में संचित तक़लीफ के समंदर
और चेहरे पर लिखी जुझारू तकरीर पर
 ऊबड़-खाबड़ रास्तोंं को जीतने के बुलंद इरादों पर
हासिल-ए-मंजिलात के आत्मजयी जज़्बातों पर
गगनचुंबी अरमानों की अलमस्त मुस्कान पर
हर बार हो जाता हूं मायूस यह सोचते हुए
कि काश मैं भाषाविद होता या भाषा ही समृद्ध होती
मनोरम तस्वीर की संपूर्म काव्य-अभिव्यक्ति केलिए
खत्म हो जाएगा जिस दिन शब्दों का अकाल
बुनूंगा इस तस्वीर पर जरूर एक शब्द जाल
(ईमिः02.05.2014)

2 comments:

  1. कविता लिखने के लिये दिल चाहिये भाषा नहीं बढ़िया है ।

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