नहीं लगायी थी आग उसने
प्यार की तैयार फसल में
फेंका था सिर्फ एक तीली
मुजरिम हैं जेठ गर्म हवाएं
नहीं बोयाा था उसने
बीज नफरत के
अपने आप उग आई
नफरत की फसल जंगल की तरह
उसने सींचा भर था खाली जमीन
नस्ल-ए-आदम के लहू से
गुनहगार है धरती
गुनहगार है धरती
कोटता जा रहा है बिना बोए
फसल-दर-फसल तबसे
कछार में गन्ने की पेड़ी की तरह
बस सींचता रहता है इसे यदा कदा
(ईमिः05.05.2014)
thnx
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