@T.n. Tiwari : पहली बात तो आप झूठ बोल रहे हैं कि आपने कभी ये सवाल पूछा. वैसे अगर आप यदि तोतागीरी छोड़कर मेरी बातें कभी दिमाग के इसतेमाल के साथ पढ़ा होता तो आपके सारे सवालों का जवाब मिल जाता. इसी मंच पर चुनाव और उदारवादी जनतंत्र पर कई लेख पोस्ट कर चुका हूं. मैं अपने विद्यार्थियों को कहता हूं ज्ञान की कुंजी है- अनवरत प्रश्न और एक शिक्षक को प्रवचन से नहीं मिसाल से पढ़ाना चाहिए. अंबानी और अडानी के मोदी सो संबंधों पर बहुत लिखा जा चुका मैंने भी 2-3 लेख इसी मंच पर डाले थे भगवा चश्मे से देखने पर कई बातें नहीं दिखतीं. आपके सवालों जवाबः 1. मैंने कभी बुद्धिमान होने का दावा नहीं किया. एक सुदूर पिछड़े गांव में पला-बढ़ा एक एक अतिसाधारण इंसान हूं. मेरे वोट की कीमत किसी के भी वोट से ज्यादा नहीं है और मों संपूर्ण समानता का पक्षधर हूं. 2. मैं तो व्यवस्था का विरोधी हूं. मजदूर(श्रम शक्ति बेचने वाला), जो कि हम आप भी हैं, परिभाषा से अपने आप में एक वर्ग है लेकिन वह ेक भीड़ का टुकड़ा बना रहता है जब तक वह जनवादी (वर्ग)चेतना से लैस होकर अपने लिए वर्ग नहीं बनता और किसी लहर-हवा में सवार हो भेंड़चाल में चलता रहता है. हमारे आप जैसे सुविधासंपन्न मजदूर शासक होने का भ्रम पालते है, इसीलिए मैं इन्हें लंपट बुर्जुआ कहता हूं. 3. मैं वोटिंग के पहले किसी पार्टी का प्रचार नहीं किया क्योंकि जनविहीन जनतंत्र को मैं झनतंत्र मानता हूं और इसीलिए जनवादी सामाजिक चेतना का प्रसार करता हूं. फौरी और दीर्घकालीन उद्देश्यों में संतुलन बनाना होता है. फौरी खतरा देश को फासीवाद से है और मैं बनारस फासीवाद के विरुद्ध प्रचार करना गया था और मोदी की हार की प्रबल संभावनाएं हैं. 4. निश्चित, अपनी बौद्धिक सीमाओं के अंतर्गत आपकी जिज्ञासा संतुष्ट करने का प्रयास करूंगा, यदि आप बंद दिमाग खोलकर संवाद का कष्ट करेंगे. 5. मैं पैदाइसी वाचाल हूं मौन मेरे स्भाव के प्रतिकूल है.
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बहुत बढ़िया है :)
ReplyDeleteजी
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