Wednesday, May 28, 2014

क्षणिकाएं 23 (441-50)



441
शुरू कर दिया है भरम तोड़ना उसने
हवाले-खाक़ कर दिया दुकानें बाड़मेर में
नहीं है वैसे इसमें बजरंगियों का हाथ
कांग्रेस के भाजपा सांसद की करामात
आगे आगे देखिए अच्छे दिनों के हालात
जुबान खोलने पर पड़ सकती है लात
(ईमिः18.05.2014)
442
 मिल जाते तुम तो खुदा हो जाते
इश्क-ए-जहाँ से नावाक़िफ ही रह जाते
मिल जाते जो तुम शुरू कर देती इबादत
दिमाग के इस्तेमाल की न पड़ पाती आदत
मिले न तुम तो मिली मुकम्मल कायनात
जश्न-ए-जहां में बीतते हैं दिन-ओ-रात
मिलते हैं वरदान अभिशाप के भेष में
मुहब्बत मिल जाती है वीराने देश में
वैसे तो इसका उल्टा भी हो सकता है
अच्छे के भेष में बुरा भी आ सकता है
छोड़ते है यहीं मगर ये बुरी बात
आओ करते हैं एक नई मुलाकात
ज़ुनूं में लेकर चलें हाथों में हाथ
मिलें कारवाने-इंकिलाब के साथ
मजा ही अलग इश्क का जमाने से
शामिल महबूब का भी इश्क जिसमें
शुक्र है कि खोजले पर तुम न मिले
खुदाई-ओ-बंदगी की ज़िल्लत से बच निकले
(हा हा बेतुकी तुकबंदी हो गयी.)
(ईमिः22.05.2014)
443
खुदाई-ओ-बंदगी की उबाऊ ज़िल्लत से दिगर
एक और गड़बड़ होती तुम मिल जाते अगर
एक की आबादी में सिमट जाती कायनात
शेष हो जाती अर्जुन के लक्ष्य का व्यर्थ भाग
(ईमिः22.05.2014)
444
याराना की यादें  होती हैं दोतरफा सदा
एक तरफ रुकी तो दूसरी तरफ भी सफा
(ईमिः25.05.2014)
445
लिखना है एक कविता इस आत्म-मुग्ध तस्वीर पर
इसके अंदर छिपी अनंत संभावनाओं की तासीर पर
चाहा था इसने बचपन में करना वर्जनाओं से विद्रोह
तोड़ न पाई तब मगर समाजीकरण के संस्कारों का मोह
पड़ गयी थी पूर्वजों की परंपरा तब सोच पर भारी
बढ़ती रही स्वाभिमान से  आगे कभी हिम्मत न हारी
करती रही है योगदान नारी प्रज्ञा-दावेदारी के अभियान में
करके मानवता की सेवा जीते हुए ज़िंदगी सम्मान से
मानव चेतना का स्तर होता है विकास के चरण के अनुरूप
मनुष्य के चैतन्य प्रयास से बदलता विकास का स्वरूप
अनंत को नापती ये आंखें और आत्माश्वस्त मुस्कान
देती हैं संकेत भरने की ऊंची एक नई इंक़िलाबी उड़ान
छिपी है इसकी भावप्रवण मुद्रा में एक नई अंतर्दरृष्टि
करेगी मानव समाज में जो समानुभूति की वृष्टि.
(ईमिः 25.05.2014)
446
सच मरता नहीं कितना भी बढ़ जाये झूठ का कुन्बा
अकेले सच में होता है सारे  झूठों को झुकाने का ज़ज़्बा
(ईमिः25.05.2014)
447
जंग की रीतियां रुकी नहीं, बदलती रही हैं
आखिरी जंग होगी, जंग की रीति के खिलाफ
(ईणिः26.05.2014)
448
इंसानों में कमी है इंसान की, है दुनिया में तोतों की भरमार
बचकर कष्ट से दिमाग लगाने के, करते हैं रटा-रटाया मंत्रोच्चार
जहमत है बनाने में नय़े रास्ते, चलते हैं आंख मूंद कर भेड़चाल
तोता बोेलता है सिर्फ वही , जो उसे सिखाया जाता है
गड़ेरिया बैठाता भेंड़ उस खेत, जहां से पैसा हाता है
जबतक बने रहेगे लोग, यंत्रचालित तोते और भेड़ें
करते रहेंगे राज मुल्क पर, बहेलिए और गंडेरिए
(ईमिः27.05.2014)
449
सुनता नहीं  जब दिमाग की बात दिल हो जाता है बेलगाम
बह कर इच्छा के आवेग में कर बैठता है आत्मघाती काम
वैसे तो होते नहीं अलग-अलग दिल-ओ-दिमाग के मुकाम
दोनों की द्वंद्वात्मक एकता है देती मानव क्रीड़ा को अंज़ाम
ज़िंदगी का वजूद है सबूत है कि निरंतर है क्रियाशीलता
बनती हैं काम वे क्रियाएं टपके जिनसे सृजनशालता
स्वांतः सुखाय सृजन है बर्बादी दुर्लभ प्रतिभा की
सच्चे सृजन का मक्सद है समृद्धि मानवता की
(27.05.2014)
450
धूप में चलने की आदत है कारवानेजुनून को
बेपनाही के मौज में पनाह की जरूरत नहीं.
(ईमिः28.05.2014)

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