Sunday, May 4, 2014

क्षणिकाएं 21 (421-30)




421
आप तो रोशनी दिखाने आए थे
आप दिया बुझाने लगे ये तो हद है
आए थे जो बेनकाब करने लुटेरों
लूट में हिस्सेदार हो गए ये तो हद है
रोटी के लिए बेचता है इंसान अपनी चमड़ी
चंद सिक्कों के लिए बेचे ज़मीर ये तो हद है
दानिशमंदी करते हैं जो दावा
फैलाने लगे जहालत ये तो हद है
(जारी)
(ईमिः30.04.2014)
422
उसको हक़ है तेरा रकीब चुनने का
तुम्हें हक़ नहीं उसे भला-बुरा कहने का
(ईमिः29.04.2014)
423
बदल दे जिसे वक़्त वो तेग-ए-तेवर ही क्या
हैं गर इरादे बुलंद रोक नहीं सकता उसे तूफाँ
(ईमिः30.04.2014)
424
Some nostalgia some Vodka  and intense love making
I felt having gone back into 30 years old past
I felt him the same as I felt then in fantasies   
I was not even eighteen 
when I saw him first flirting with girls in a subtle way
then I realized the girls were flirting not he
I felt the penetrating glaze of the looks of his eyes
then I realized he was not even looking at me
yet I felt a unique sensation between my thighs
and heavenly when he held me by he shoulder
I feared he may put his hands in my skirts
but that was my imagination
but would come every night in my fantasies
and would make intense love
I knew I was in love
It was 30 years ago when I was not even eighteen.
(ईमिः28.03.2014)
425
आओ लेते हैं लोहा  ज़ुल्म से मिलकर सभी
भूलकर भेदभाव, मनमुटाव  आपसी अभी
लिए हाथों में हाथ जब चलेंगे साथ साथ
होगा मजबूत बहुत सामूहिकता हाथ
मिलजुल इंसाफ के लिए साथ लड़ने से
होती है आसानी मतभेद दूर करने में
देखकर हमारी जुझारू एकता अखंड
ज़ुल्म के खेमें में मच जाएगा हड़कंप
सुनकर हमारी सामूहिक ललकार
दुश्मन के खेमें में मचेगा हाहाकार
बौखलाहट में करेगा आत्मघाती वार
जाएगा आधी लड़ाई तभी वो हार
होगा दुर्ग-ए-ज़ुल्म पर जब लामबंद वार
ध्वस्त हो जाएगी तब इसकी दीवार
होगें खत्म धरती से सारे अत्याचार
जीतेगा इंसाफ होगी नाइंसाफी की हार
सलाम
(ईमिः30.04.2014)
426
गुफ्तगू की ये शर्त तो फिर भी ठीक है
चिंता की बात सिमटना गणित का ज्ञान
बताता दुनियां की जनसंख्या जो सिर्फ एक
अर्जुन के लक्ष्य के व्यर्थ भागों की तरह
 दृष्टि सीमा लांघ जाते हैं शेष
(ईमिः29.04.2014)
427
इंतजार-ए-तबील में करो मत खर्च वक्त
आता नहीं लौटकर फिर कभी ये कंबख्त
बढ़ो आगे जुटाकर अपने अंदर का संबल
साथ चलेगा सफर बन तुम्हारा दलबल
रुको नहीं पाकर बस पहली मंजिल
अगली की योजना में रहे सदा दिल
(ईमिः30.04.2014)
428
मकसद था इंगित करना समाज में बढ़ता व्यक्तिवाद
बाकी आबादी लगती है अर्जुन के लक्ष्य का व्यर्थ भाग
अलापते रहेंगे जब तक मेरा-तेरा का राग
डराते रहेंगे हमको फन काढ़े सभी कालिया नाग
इसीलिए करता हूं मिलकर चलने की गुजारिश
कुचल दें फन जहरीले कर दें नाकाम शाजिस
(ईमिः30.04.2014)
429
कहते हो लगी है पूरी कयानात एक शख्स को झुकाने में
मशगूल है हैवानियत से जो उस पर कब्ज़ा जमाने में
नहीं होती जरूरत गिरे हुए शख्स को झुकाने की
पालता है जो खुशफहमी सल्तनत-ए-जमाने की
रौंदना चाहता है सारी कयानतक वो बद्मिज़ाज
कुद को महादेव समझ बैठा है ज़ाहिल बद्दिमाग
इतिहास नहीं जानता वह फेकू नरपिशाच
जला देगी फासीवादी मंसूबे जनवाद की आग
महामानव की गफलत में भाजपा की कब्र खोदी
जानता नहीं खुद दफ्न होगा उसीमें नरेंद्र मोदी
(ईमिः2 मई 2014)
430
कई बार सोचा लिखने को एक कविता
इस मनमोहक तस्वीर पर
आंखों में संचित तक़लीफ के समंदर
और चेहरे पर लिखी जुझारू तकरीर पर
 ऊबड़-खाबड़ रास्तोंं को जीतने के बुलंद इरादों पर
हासिल-ए-मंजिलात के आत्मजयी जज़्बातों पर
गगनचुंबी अरमानों की अलमस्त मुस्कान पर
हर बार हो जाता हूं मायूस यह सोचते हुए
कि काश मैं भाषाविद होता या भाषा ही समृद्ध होती
मनोरम तस्वीर की संपूर्म काव्य-अभिव्यक्ति केलिए
खत्म हो जाएगी जिस दिन शब्दों का अकाल
बुनूंगा इस तस्वीर पर जरूर एक शब्द जाल
(ईमिः02.05.2014)

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