Sunday, May 4, 2014

मोदी विमर्श 28

मेरी एक कविता पर अवध विवि से शिक्षित एक मोदियाये सज्जन ने मुझे कार्टून घोषित कर दिया बिना कारण बताये. अवध विवि का जिक्र इसलिए कर रहा हूं कि मेरे गांव-जवार के लड़के और लड़कियां इसी विवि के किसी-न-किसी कॉलेज में पढ़ते हैं. एक बार घर गया तो प्राचीन इतिहास में यमए के एक विद्यार्थी से मैंने आरयस शर्मा, रोमिला थापर आदि कुछ इतिहासकारों के बारे में पूछा तो नाराज हो गया और बोला कि वह फालतू लोगों के बारे में नहीं जानता पूर्वांचल गाइड पढ़कर काम भर का नंबर आ जाता है. उनके कमेंट पर कमेंटः
Brijesh Pandeyआपकी गलती नहीं है, संघियों को भाषा की यही तमीज सिखायी जाती है. ये जाहिल विषय पर बात करने का विवेक तो रखते नहीं, दिमाग में वर्णाश्रमी कूड़ा भरे होने के चलते निजी आक्षेप औरक गाली गलौच ही इन मोदियाये लंपटों की संस्कृति है. मोदियापा बुद्धिविनाश का भयानक रोग है जो ऐसी मानसिक विकृति पैदा करता है कि इससे ग्रस्त लोग दिमाग का इस्तेमाल बंद करके पशुकुल में शामिल हो जाते हैं क्योंकि वे अपने नरपिशाच आराध्य का एक वाक्य या कृत्य उद्धृत करने में अक्षम पाते हैं जिससे अंबानी-अडानी का ज़रखरीद उन्हें भगवान लगता है.

मोदियापे से संबंधित एक पोस्ट पर एक सम्मानित फेसबुक मित्र की आस्था इतनी आहत हुई कि उन्होंने मुझे दिमागी विकृत और मोदीफोबिया की कुंठा का शिकार घोषित कर दिया. उस पर टिप्पणीः
Sudha Mishra Dwivediशुक्रिया सुधा जी, सकारण बताती तो अच्छा लगता. मैं अपनी बातें तथ्य-तर्कों पर कहता हूं. आप का कमेंट भी मोदियाये लंपटों के फतवाबाजी की ही कोयि में आता है. मैं मोदियापा से ग्रस्त सारे लोगों को एक चुनौती देता हूं अभी तक किसी ने जवाब नहीं दिया कि इस नरपिशाच का एक वाक्य या कृत्य उद्धृत करें जिससे बीबी छोड़कर पुलिस-प्रशासन की मदद से सीटियाबाजी करने वाले, हिटलर के मानसपुत्र, अंबानी के यह  ज़रखरीद उनका आराध्य बन
गया.जरा सोचिए मोदी के रणबांकुरों ने जिस औरत का गर्भ चीर कर भ्रूम को आग के हवाले किया, वह आप या आपकी कोई प्रिय होती तो कैसे लगता. शामली में जिस माँ के सामने उसकी बेटियों का और बच्चों के सामने माँ का हर हर मोदी के नारों के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया वह मां आप होतीं तो कैसा लगता. फर्जी वीडियो का प्रसारण करके् दंगे भड़काने वाले भाजपा विधायक का मोदी ने सार्वजनिक अभिनंदन कियीा और मुज़फ्परनगर के कुटबा गांव में मुसलमानों पर हमले का नेतृत्व करने वाला संजीव बालियान भाजपा का उम्मीदवार है. गौर तलब है कि खुटबा में 8 हत्यायें हुई थी और बाकी अपनी ही धरती पर शरणार्थी होने को विवश हैं.हमने अपनी रिपोर्ट में इंगित किया है कि अलग अलग चुनावी निहित स्वार्थों से इन दंगों में मोदी-मुलायम की परोक्ष मिलीभगत रही है. सुधा जी मानवता और मानवीय मूल्यों के पक्ष में सांप्रदायिक पूर्वाग्रहों और अंध आस्था से ऊपर उठें. मेरी बातें बुरी लगती हों तो तर्क(कुतर्क) से उन्हें खारिज करें और ब्लॉक करने का विकल्प भी है आपके पास. और अंत में मोदी जी की कृपा से अनाथ हुए, देश के विभिन्न अनाथालयों में पल रहे गुजरात के उन नौनिहालों के बारे में भी जरा सोचें जो मुसलमान घर में पैदा होने के बावजूद वैसे ही बच्चे हैं जैसे हमारे आपके. एक सूबे के सूबेदारीदारी से इतना कोहराम मचाकर सूबे की संपदा अपने थैलीशाह आकाओं को सौंपने वाले के हाथ सल्तनत की बागडोर आ गई तो मुल्क का क्या होगा सोचा कभी आपने? सादर.

Brijesh Pandey तुच्छ स्वार्थों के लिए नफरत का माहौल फैलाकर जनसंहार और सामूहिक बलात्कार के आयोजक के लिए नरपिशाच से कम क्या कहा जाय?. बीबी को उसके हाल पर छोड़कर एक लड़की का पीछा करने के लिए राज्य मशीनरी तैनात करने वाले सीटियाबाज को लंपट नहीं तो और क्या कहा जाय. मोदी की कहर की शिकार महिलाओं में आपकी मां-बहन होती तो आप उसे क्या कहते? औने-पौने दामों में किसानेों की हजारों एकड़ जमीनें और अहार खनिज संपदा अंबानियों-अडानियों-टाटाओं को दिकर किसानों को आत्महत्या के लिए मजबूर करने वाले उनके पैसों से 
हजारो करोड़ छविनार्माण करके बदले में देश लुटाने वाले को आप इन थैलीशाहों का दलाल नहीं तो क्या कहेंगे. दलाल बुरा लगता है तो एजेंट कह सकते हैं. मोदी ने धनार्जन का जीवन में क्या काम किया है कि उनकी घोषित करोड़ों की संपत्ति है  अघोषित की छोड़िए? आप जानते ही हैं व्यापारी कभी घाटे का सौदा नहीं करता, मोदी कहां से लौटायेंगे? वैसे तो भाजपा के सभी दिग्गजों, खासकर उत्तर भारतीय ब्राह्मण भाजपाइयों को किनारे लगाकर एक मात्र राष्ट्रीय नेता बनकर भाजपा के प्रधानमंत्री तो बन ही चुके हैं, बाकी अगली बार. मुसोलिनी और हिटलर ने भी सबसे पहले अपनी ही पार्टी के बड़े नेताओं को बौना बनाकर शुरुआत की थी. लेकिन 2010 के दशक का भारत 1920-30 के दशक का जर्मनी नहीं है. वौसे हिटलर भी चुनाव के जरिए सत्ता में आया था जर्मनी के सोसल डेमोक्रेट्स कीकृपा से,  जो कम्युनिस्ट विरोध  की मदांधता में हिटलर के पॉपुलिस्ट अधिनायकवादी मंसूबों से बेखवर रहे. हिटलर ने कम्युनिस्टों को तो खत्म ही किया, सोसल डेमोक्रेट्स को भी नहीं बख्शा. सोसल डेमोक्रेट्स के कुछ भारतीय संस्करण -- अंबेडकरी रामों, दंगों से आहत अकबरों और अब तक सांप्रदायिकता को खतरा मानने वाले दूसरे दलों के माफिया और गैर मॉफिया किस्म के, टिकट से वंचित अन्य दलों के नेता -- तो लॉटरी निकलने की उम्मीद में  अभी सो साथ हो लिए हैं. अगर देश के दुर्भाग्य और कुतर्क के बहुमत से मोदी जी की सरकार बन भी गयी तो इनके (थैलीशाहों के) उपकार का प्रति-उपकार मोदी जी कहाँ से करेंगे.?

मैं तो सुधाजी हमेशा निःस्वार्थ भाव से, समझ को विकसित करने की कोसिस करता हुआ,अपनी समझ के दायरे में आमजन के हितों का हमदर्द, सीखने और बदलने के लिए तत्पर एक साधारण इंसान हूं. कई बार जानबूझकर और कई बार फौरी प्रतिक्रिया में आवेश में आक्रामक भाषा का प्रयोग कर जाता हूँ. अनाक्रामक भाषा में भी वह बात कही जा सकती है. आजकल कोशिस कर रहा हूं. निराधार निजी आक्षेप पर प्रतिक्रिया में मैं कई बार भूल जाता हूं कि 33 साल पहले 25 साल का था. कोशिस करता हूं याद रखूं, फिर भी कभी कभी भूल ही जाता हूं. क्षमा. 

No comments:

Post a Comment