मिल जाते तुम तो खुदा हो जाते
इश्क-ए-जहाँ से नावाक़िफ ही रह जाते
मिल जाते जो तुम शुरू कर देती इबादत
दिमाग के इस्तेमाल की न पड़ पाती आदत
मिले न तुम तो मिली मुकम्मल कायनात
जश्न-ए-जहां में बीतते हैं दिन-ओ-रात
मिलते हैं वरदान अभिशाप के भेष में
मुहब्बत मिल जाती है वीराने देश में
वैसे तो इसका उल्टा भी हो सकता है
अच्छे के भेष में बुरा भी आ सकता है
छोड़ते है यहीं मगर ये बुरी बात
आओ करते हैं एक नई मुलाकात
ज़ुनूं में लेकर चलें हाथों में हाथ
मिलें कारवाने-इंकिलाब के साथ
मजा ही अलग इश्क का जमाने से
शामिल महबूब का भी इश्क जिसमें
शुक्र है कि खोजले पर तुम न मिले
खुदाई-ओ-बंदगी की ज़िल्लत से बच निकले
(हा हा बेतुकी तुकबंदी हो गयी.)
(ईमिः22.05.2014)
पुनश्चः
खुदाई-ओ-बंदगी की उबाऊ ज़िल्लत से दिगर
एक और गड़बड़ होती तुम मिल जाते अगर
एक की आबादी में सिमट जाती कायनात
शेष हो जाती अर्जुन के लक्ष्य का व्यर्थ भाग
(ईमिः22.05.2014)
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