Saturday, May 31, 2014

मार्क्सवाद 2

ज़ज्बा को सलाम, बनाए रखना है ये ज़ज़्बा, आगे बड़ी लड़ाइयां हैं. कॉ. हमें (जो भी अपने को वामपंथी समझते हैं) गंभीर आत्मावलोकन की आवश्यकता है.अस्तित्व में आने के शुरुआती दौर में, 1920 और 30 के दशकों में अंग्रेजी सरकार सबसे बड़ा खतरा कम्युनिस्टों को मानती थी और कम्युनिस्ट पैर्टी को गैर कानूनी घोषित करके पूरी पार्टी पर ही 2 मुकदमें (कानपुर और मेरठ षड्यंत्र मामले) चलाए. अंतर्राष्ट्रीयता का आलम यह था कि मेरठ केस में कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ ग्रेट ब्रिटेन के 2 कॉमरेड भी बंद थे जिन्होने औपनिवेशिक सरकार की सारी शर्तें ठुकराकर अपने हिंदुस्तानी कॉमरेडों के साथ जेल यातना चुना. संयुक्त वाम के प्रभाव ने गांधी के उम्मीदवार को कांग्रेस अध्यक्ष पद पर हरा दिया था. सत्ता हस्तांतरण के बाद, To wreck from within के बहाने क्रमशः  मोहन कुमारमंगलम और अशोक मेहता थेसिस के तहत कई कम्युनिस्ट और सोसलिस्ट नेताओं के कांग्रेस में जाने के बावजूद, संसद और विधान सभाओं में वामपंथी ही मुख्य विपक्षी थे. सीपीआई चुनावी मंच का इस्तेमाल की बजाय ख्रुस्चेव-ब्रजनेव के निर्देश में चुनावी पार्टी बन गयी और अंततः कांग्रेस की पिछलग्गू और आपात काल के बाद बंगाल और केरल में सरकार का इस्तेमाल जनता का जनवादीकरण करने की बजाय सत्ता भोग में बाकी चुनावी पार्टियों के मात देना लगीं और नष्ट हो गयीं. नक्सलबाड़ी के स्वस्फूर्त क्रांतिकारी उभार के बाद क्रांतिकारी आंदोलन और दमन पर भी कभी खुली बहस नहीं हुई और उसकी विरासत के 2 दर्जन के लगभग दावेदार हैं और लिबरेसन का समर्थन आधार 1980 के दशक के अंतिम सालों में जितना था उससे आगे नहीं बढ़ा. यह किसी पार्टी की आलोचना नहीं, आत्मालोचना है. दुनिया भर में दक्षिणपंथी उभार के मद्देनज़र दुनिया के वामपंथियों को आत्मावलोकन और पूंजी के वर्तमान भूमंडलीय चरित्र की पुनर्व्याख्या और सहमति के मुद्दों पर व्यापक वाम एकता की जरूरत है. गैर-पार्टी वामपंथियों को भी अपनी भूमिका तय करनी होगी. आज एक नये इंटरनेसनल की जरूरत है.

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