Wednesday, May 21, 2014

लल्ला पुराण 154

Sumant Bhattacharya तम्हारी लगभग हर पोस्ट, जाते-जाते को छोड़कर इसी तकियाकलाम से शुरू होती हो कि लोग कहेंगे सुमंत मोदिया गया है. बार बार तुम्हारी दाढी में तिनका क्यों महसूस हो रहा है? अफ्सरों में हड़कंप से अच्छे दिन की तुम्हारी उम्मीद से आपातकाल का फासीवाद का रूप याद आता है. आपातकाल में ट्रेंने समय पर चलती थीं. विवि में परीत्रा समय पर हाती थीं. जैसे नैकरशाही मोदियायी हुई है वैसे ही संजयायी हुई थी.अफ्सरों और थैलीशाहों की युवराज की कृपा से चांदी थी. शहर के सारे गुंडा-मवाली संजय ब्रिगेड के हरकारे थे. धीरू भाई अंबानी जैसे लोग कबाड़ी से पूंजीपति बन गये. सोकिन मैका मिलते ही जनसा ने मुक्ति ली रानी-युवराज के फासीवाद से. वैसे मोदियाने की कतार तो लगी है. 16वीं सदी में इटली के फ्लोरेंस गणतंत्र  में शासक समिति के कौन्सुलर रहे मैक्यावली ने शासनशिल्प की अपनी अद्भुत कृति -- प्रिंस जो आज भी प्रासंगिक है -- को  स्पेन की मदद से सैन्यविजय के जरिए गणतंत्र को उखाड़कर निरंकुशतंत्र  स्थापित करने वाले डि' मेडिसी को समर्पित किया. लोग कहते हैं ऐसा उसने शासकीय कृपा के लिए किया. खैर उन्हें फ्लोरेंस का सरकारी इतिहास लिखने का असायनमेंट मिल गया था. खैर अवांछित सरकारी बेरोजगारी और अवांक्षित ग्रामीण एकांत मैक्यावली के लिए blessing in disguise  साबित हुयी. Prince के अलावा Discourses on Ten letters of Livius Titus जैसी क्लासिक दार्शनिक कृतियां लिखा गयीं जो सक्रिय राजनीति में रहते हुए शायद मुश्किल होता. ऐसे ही याद आगया. अन्यथा मत लेना.

Sumant Bhattacharya  मैंने सामाजिक न्याय के लफ्फाजों पर एक पोस्ट डाला था, खोजकर लिंक देने की कोशिस करूंगा. मैंने अलीगढ़ और इलाहाबाद में भी यही कहा था और अब भी कह रहा हूं कि यह मुद्दा लक्षण है रोग नहीं लेकिन कभी खबी लक्षणों के इर्द-गिर्द लामबंदी की शुरुआत से रोग की जड़पर हमला किया जा सकता है. हां यदि छात्र इस मुद्दे पर आंदोलन करते हैं तो मैं उनका समर्थन और बौद्धिक सहयोग करूंगा.  तानाशाहियों का इतिहास जुल्मतों का इतिहास होता है, सुशासन का नहीं. 

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