Sunday, May 4, 2014

क्षणिकाएं 20 (411-20)



411
मुझे तो किसी फिल्म का जोकर दिखाई देता है
लोगों को इस फेकू में क्या क्या दिखाई देता है
किसी को विष्णु का अवतार दिखाई देता है
तो किसा को रामदेव का चमत्कार दिखाई देता है
किसी को मैक्यावली का जिंदा प्रिंस दिखाई देता है
तो किसी को साश्वत हिटलर दिखाई देता है
किसी को महादेव का कारपोरेटी सार दिखाई देता है
तो कुछ को गोलवल्कर का अवतार दिखाई देता है
जिसको उत्तरी ध्रुव पर बिहार दिखाई देता है
तो इसे बिहार में तक्षिला दिखाई देता है
कभी लाहौर को अंडमान बता देता है
सिकंदर को चंद्रगुप्त से गंगा तट पर लड़ाता है
तो वीवेकानंद को श्यामा प्रसाद से मिलवाता है
वो खुद को मुल्क का चौकीदार बताता फिरता है
अंबानी को मुल्क का कारोबार सौंपता है
लोगों को इसमें अलादीन का चिराग दिखाई देता है
मुझे तो किसी फिल्म का जोकर दिखाई देता है
कहते हैं कि मर चुका हिटलर मगर अकसर दिखाई देता है
दोज़ख़ का डर कैसा ये नज़ारा यहां हर रोज दिखाई देता है
लोगों को इस फेंकू में क्या क्या दिखाई देता है
मुझे तो किसी फिल्म का जोकर दिखाई देता है
(ईमिः21.04.2014)
412
निकलता है कारवां जब थहाने उदधि
डरा सकती नहीं उसे लहरों की परिधि
है ग़र पकड़ मजबूत पतवार पर
रोक लो कसती चाहे जिस घाट पर
नहीं आखिरी पड़ाव कोई भी साहिल
एक पड़ाव के बाद अगले का करता दिल
एक नहीं अनेक हैं नई नई मंज़िलें
अथक कारवां ग़र चलता चले
(ईमिः23.04.2014
413
विमर्श को विकृत करने का है ये एक कुतर्क संघी
कुछ भी हो मसला नमो नमो चिल्लाता तोता बजरंगी
कहता लाएगा दिन अच्छे अब नरेंद्र भाई मोदी
बोला जो कि पूर्वज था उसका सिकंदर लोदी
पता चला जैसे ही वह तो था मुसलमान
पलटा तुरंत बात से बोला फिसली जुबान
दर-असल वो पूर्वज था सिकंदर महान
खड़ा किया जिसने सल्तनत-ए-हिंदुस्तान
नहीं जपेगा जो बन तोता नमो नमो का मंत्र
गद्दार घोषित कर देगा उसको मोदी तंत्र
नहीं रहेगा उसका यहां कोई निशान
भेद देंगे मोदी उसको पाकिस्तान
जागो संघी बंधुओं खोलो जरा दिमाग
मत भड़काओ मुल्क में नफरत की और आग
मचाओगे ग़र मुल्क में गृहयुद्ध से तबाही
बचा नहीं पायेगी इसे कोई भी तानाशाही
मिलेगी ग़र बजरंगियों को मार-काट की छूट
बढ़ जायेगी मुल्क में अंबानियों की लूट
बनेंगे तोता-भेंड़ ग़र मुल्क के इंसान
रच नहीं सकते वे किसी मुक्ति के विधान
हो जायेंगे ग़र बौने् मुल्क के इंसान
नमो नमो से नहीं बनेगा कोई मुल्क महान
इसलिए संघी बंधुओं खोलो दिमाग
बुझाओ आओ मिलकर मुल्क में लगी आग
रोको यह तानाशाह मीनवता का अनचाहा
कर दो चुनावी यज्ञ में नमो नमो स्वाहा
(ईमिः 23.04.2014)
414
निकलता है कारवां जब थहाने उदधि
डरा सकती नहीं उसे लहरों की परिधि
है ग़र पकड़ मजबूत पतवार पर
रोक लो कसती चाहे जिस घाट पर
नहीं आखिरी पड़ाव कोई भी साहिल
एक पड़ाव के बाद अगले का करता दिल
एक नहीं अनेक हैं नई नई मंज़िलें
अथक कारवां ग़र चलता चले
(ईमिः23.04.2014)
415
देश न झुकने देंगे, दे देंगे अंबानी और अदानी को
बेचेंगे फिर इसकी अस्मत वालमार्ट किरानी को
देश न झुकने देंगे मार देंगे सब मुसलमान
रोकेगा जो अश्वमेध जायेगा वो पाकिस्तान
कह रहा था यह बात एक मोदियाया नौजवान
था जो ज़मीनी हक़ीकत से बिल्कुल अंजान
तब का जर्मनी नहीं है अब का हिंदुस्तान
सबको मालुम है गोएबल्स की दास्तान
रोकेगी अहंकारी अश्वमेध बुद्ध-ओ-कबीर की काशी
डुबाएगी नफररत का रथ वरुणा-ओ-अस्सी
नहीं रहेगी वरुणा अब प्रसाद की शांत कछार
करेगी कठमुल्लेपन पर कबीराना प्रहार
छेड़ेगी काशी कर्मकांड के विरुद्ध अभियान
लाएगी धरती पर बुद्ध का प्रबुद्ध बिहान
सोचो तब क्या करेगा यह नरपिषाच
होंगे जब साथ सांसद एक सौ सात
होंगे उसमें बिके हुए आधे कांग्रेसी
वे तो हैं सदाबहार पक्षी प्रवासी
क्या करेंगे तब ये मोदियाये नौजवान
खोलो बंद दिमाग और बन जाओ इंसान.
(ईमेः26,04.2014)
416
देश न झुकने देंगे, दे देंगे अंबानी और अदानी को
बेचेंगे फिर इसकी अस्मत वालमार्ट किरानी को
देश न झुकने देंगे मार देंगे सब मुसलमान
रोकेगा जो अश्वमेध जायेगा वो पाकिस्तान
कह रहा था यह बात एक मोदियाया नौजवान
था जो ज़मीनी हक़ीकत से बिल्कुल अंजान
तब का जर्मनी नहीं है अब का हिंदुस्तान
सबको मालुम है गोएबल्स की दास्तान
रोकेगी अहंकारी अश्वमेध बुद्ध-ओ-कबीर की काशी
डुबाएगी नफररत का रथ वरुणा-ओ-अस्सी
नहीं रहेगी वरुणा अब प्रसाद की शांत कछार
करेगी कठमुल्लेपन पर कबीराना प्रहार
छेड़ेगी काशी कर्मकांड के विरुद्ध अभियान
लाएगी धरती पर बुद्ध का प्रबुद्ध बिहान
सोचो तब क्या करेगा यह नरपिषाच
होंगे जब साथ सांसद एक सौ सात
होंगे उसमें बिके हुए आधे कांग्रेसी
वे तो हैं सदाबहार पक्षी प्रवासी
क्या करेंगे तब ये मोदियाये नौजवान
खोलो बंद दिमाग और बन जाओ इंसान.
(ईमेः26,04.2014)
417
उसूलों की ज़िंदगी का है अलग आनंद
सत्ता का भय होता है ईमानदारी का आतंक
(ईमिः26.04.2014)
418
नहीं जी जाती डर डर कर ज़िंदगी
डर डर कर मरते हैं पल पल लोग
(ईमिः27.04.2014)
419
नहीं होता ज़िंदगी का जीवनेतर मकसद
ज़िंदगी उसूलों खुद ही एक मकसद है
बाकी साथ चलते हैं अनचाहे परिणामों की तरह
(ईमिः27.04.2014)
420
हौसला रखो, मिलेगा सिला कभी-न-कभी
वफा वैसे दखल् है फितरत-ए-आज़ादी में
तलाश-ए-वफा मेंमशगूल हो इस कदर
कि भर चुके ज़ख़्म कब के महसूसा ही नहीं
(ईमिः28.04.2014)

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