शशांक पहले तुम्हारी दूसरी बात पर एक बात फिर सवाल का जवाब. 1934 में कांग्रेस सोसलिस्ट पार्टी की स्थापना के बाद, संस्थापक, महासचिव के रूप में जेपी के किसी मार्क्स वादी बयान पर गांधी ने लिखा, Some young Congress men and women are indulging into loose talks of class war and all that.....जेपी का जवाब था, War is already on, the question is of taking side.वर्ग समाज में वर्गयुद्ध की निरंतरता बनी रहती है. सवाल पक्षधरता का है. अन्याय के विरुद्ध हर संघर्ष व्यापक वर्गसंघर्ष का अभिन्न अंग है. शोषण और लूट के विरुद्ध हर संघर्ष जारी वर्ग संघर्ष का हिस्सा है. पार्टी साधन है साध्य नहीं. वर्ग-संबंध महज आर्थिक संबंध नहीं है, वर्चस्व और अधीनस्थता का सामाजिक संबंध है जिसे वर्चस्वशाली मजबूत करने की कोशिस करता है और अधीनस्थ कमजोर करने और अंततः तोड़ने की. सामाजिक सामांजस्य एक छलावा है. वर्चस्व कई स्तरों पर है इसलिए लड़ाई के भी कई मोर्चे. सबसे बड़ा मोर्चा है सांस्कृतिक -- वैचारिक वर्चस्व जो शोषित और शासित के दिलों में ईश्वर की इच्छा के रूप में अंतिम सत्य बन बैठ जाता है. लेकिन आसान काम तो सब कर लेते हैं. हा हा तुम्हारे सवाल का जवाब अलग कमेंट में.
यह पोस्ट दर-असल मेरी "भाजपा की कब्र " की कविता सी पोस्च पर 4 कमेंट्स पर एकीकृत कमेंट था जो लगता हगै बड़ा होने के चलते पोस्ट नहीं हुआ तो पोस्ट के रूप में पोस्ट कर दिया. यहां एक एक करके शंका समाधान की कोशिस करता हूं.
@Singh Arun: लेखन में तत्सम और तद्भव दोनों का इस्तेमाल होता है, क्लिष्टता निश्चित ही बुध्धिमत्ता का परिचायक नहीं है. अच्छा अध्यापक(लेखख) वह है जिसकी बातें वगद्यार्थी (पाठक) के सर के अंदर जायें न कि ऊपर से निकल जायं. लगता है मेरे प्रयास में कोई त्रुटि रह गयी.
Dinesh Kumar Verma जैसा कि बताया यह पोस्ट मेरी पिछली पोस्ट -- भाजपा की कब्र - पर कई कमेंट्स पर मेरी प्रतिक्रियाओं का समुच्चय है. आपने विचारों के प्रभाव की बात की थी उस पर मैंने कहा कि सत्ता का भय होता है और ईमानदार विचारों का आतंक. इसी सिससिले में कहा था कि मेरे विचारों से आतंकित होकर इलाहाबाद विवि के कई ग्रुप्स के संकीर्णमना, बंदबुद्धि ऐडमिन बिना किसी जनमतसंग्रह के जनता बन मुझे बहिष्कृत कर दिए. विचारों से आतंकित पढ़े-लिखे ज़ाहिलों की बौखलाहट विचारों की महत्ता साबित करते हैं. पुष्पा जी के विकल्प की बात पर कहा था, भविष्य के आंदोलनों की रूपरेखा में फंसना मौजूदा संघर्षों से मुंह मोड़ना और दिगभ्रमित करना है. भविष्य के आंदोलनों की रूपरेखा अगली पीढ़ियां तैयार करेंगी, हर अगली पीढ़ी हमेशा तेजतर होती है क्योंकि वह पिछली पीढ़ियों की उपलब्धियों को सहेजती है और आगे बढ़ाती है.
मनुष्य ने श्रम से अपनी आजीविका का उत्पादन-पुनरुत्पादन करने की दक्षता से अहने को पशुकुल से अलग किया. यह दक्षता मनुष्य की विवेकशीलता का परिणाम है. यथास्थिति पर खतरे की डर से हमारा समाजीकरण विवेक के इस्तेमाल से हतोत्साहित करता है और तमाम लोग (आज के मोदियाये मूढ़ों की तरह) विवेक के इस्तेमाल का मुश्किल काम न कर भेड़चाल में शरीक हो भेड़ें बन जाते हैं और कई लोग इसी मुश्किल से बचकर तोतों की तरह रटा हुआ मंत्र जपने लगते हैं. मोदियापे के किसी रोगी से कुढ भी पूछिए वह जपने लगता है -- अबकी बार मोदी की सरकार. मोदी ने कहा वे बनारस गंगा मां के बुलावे पर आये हैं और ठेठ बनारसी में आप जानते हैं गंगा मां किसे काशी बुलाती हैं? कई लोग उपनी पशुता को छुपाने के लिए चालाक लोमड़ी की तरह अपने को शेर की औलाद घोषित कर देते है बिना यह बताए कि शेर उनके घर आया था या उनकी मां जंगल गयी थीं.
मैंने कहा अन्याय के विरुद्ध सारे संघर्ष वर्ग संघर्ष के हिस्से हैं. Shashank Shekhar मार्क्सवाद की पकड़ कमजोर हुई होती तो अन्याय के विरुद्ध किसी बात पर लोग मार्क्स-मार्क्स क्यों अभुआने लगते हैं. आंदोलनों के इतिहास में क्रांतिकारी विचारों में उतार-चढ़ाव आते हैं. सच है कि हर पिछली पीढ़ी अगली पीढ़ियों को वैचारिक पंगुता का शिकार बनाती है लेकिन हर अगली पीढ़ी तेजतर होती है और अंततः विचारपंगुता की पिछली पीढ़ियों की साज़िशों को नाकाम कर देती है. मेरे पिता जी को मुझसे आईएयस-पीसीयस की अपेक्षा थी उनके अपेक्षित राह पर चलने से इंकार करने के लिए मैंने उनपर आर्थिक निर्भरता खत्म कर दी थी 18 साल की उम्र में. इतिहास की गाड़ी में बैकगीयर नहीं होता... ऊबड़-खाबड़ रास्तों से इतिहास आगे ही बढ़ता है. अतीत में सारी महानताएं ढूढ़ने वाले लोग भविष्य के विरुद्ध साजिस में शरीक हैं.
यह पोस्ट दर-असल मेरी "भाजपा की कब्र " की कविता सी पोस्च पर 4 कमेंट्स पर एकीकृत कमेंट था जो लगता हगै बड़ा होने के चलते पोस्ट नहीं हुआ तो पोस्ट के रूप में पोस्ट कर दिया. यहां एक एक करके शंका समाधान की कोशिस करता हूं.
@Singh Arun: लेखन में तत्सम और तद्भव दोनों का इस्तेमाल होता है, क्लिष्टता निश्चित ही बुध्धिमत्ता का परिचायक नहीं है. अच्छा अध्यापक(लेखख) वह है जिसकी बातें वगद्यार्थी (पाठक) के सर के अंदर जायें न कि ऊपर से निकल जायं. लगता है मेरे प्रयास में कोई त्रुटि रह गयी.
Dinesh Kumar Verma जैसा कि बताया यह पोस्ट मेरी पिछली पोस्ट -- भाजपा की कब्र - पर कई कमेंट्स पर मेरी प्रतिक्रियाओं का समुच्चय है. आपने विचारों के प्रभाव की बात की थी उस पर मैंने कहा कि सत्ता का भय होता है और ईमानदार विचारों का आतंक. इसी सिससिले में कहा था कि मेरे विचारों से आतंकित होकर इलाहाबाद विवि के कई ग्रुप्स के संकीर्णमना, बंदबुद्धि ऐडमिन बिना किसी जनमतसंग्रह के जनता बन मुझे बहिष्कृत कर दिए. विचारों से आतंकित पढ़े-लिखे ज़ाहिलों की बौखलाहट विचारों की महत्ता साबित करते हैं. पुष्पा जी के विकल्प की बात पर कहा था, भविष्य के आंदोलनों की रूपरेखा में फंसना मौजूदा संघर्षों से मुंह मोड़ना और दिगभ्रमित करना है. भविष्य के आंदोलनों की रूपरेखा अगली पीढ़ियां तैयार करेंगी, हर अगली पीढ़ी हमेशा तेजतर होती है क्योंकि वह पिछली पीढ़ियों की उपलब्धियों को सहेजती है और आगे बढ़ाती है.
मनुष्य ने श्रम से अपनी आजीविका का उत्पादन-पुनरुत्पादन करने की दक्षता से अहने को पशुकुल से अलग किया. यह दक्षता मनुष्य की विवेकशीलता का परिणाम है. यथास्थिति पर खतरे की डर से हमारा समाजीकरण विवेक के इस्तेमाल से हतोत्साहित करता है और तमाम लोग (आज के मोदियाये मूढ़ों की तरह) विवेक के इस्तेमाल का मुश्किल काम न कर भेड़चाल में शरीक हो भेड़ें बन जाते हैं और कई लोग इसी मुश्किल से बचकर तोतों की तरह रटा हुआ मंत्र जपने लगते हैं. मोदियापे के किसी रोगी से कुढ भी पूछिए वह जपने लगता है -- अबकी बार मोदी की सरकार. मोदी ने कहा वे बनारस गंगा मां के बुलावे पर आये हैं और ठेठ बनारसी में आप जानते हैं गंगा मां किसे काशी बुलाती हैं? कई लोग उपनी पशुता को छुपाने के लिए चालाक लोमड़ी की तरह अपने को शेर की औलाद घोषित कर देते है बिना यह बताए कि शेर उनके घर आया था या उनकी मां जंगल गयी थीं.
मैंने कहा अन्याय के विरुद्ध सारे संघर्ष वर्ग संघर्ष के हिस्से हैं. Shashank Shekhar मार्क्सवाद की पकड़ कमजोर हुई होती तो अन्याय के विरुद्ध किसी बात पर लोग मार्क्स-मार्क्स क्यों अभुआने लगते हैं. आंदोलनों के इतिहास में क्रांतिकारी विचारों में उतार-चढ़ाव आते हैं. सच है कि हर पिछली पीढ़ी अगली पीढ़ियों को वैचारिक पंगुता का शिकार बनाती है लेकिन हर अगली पीढ़ी तेजतर होती है और अंततः विचारपंगुता की पिछली पीढ़ियों की साज़िशों को नाकाम कर देती है. मेरे पिता जी को मुझसे आईएयस-पीसीयस की अपेक्षा थी उनके अपेक्षित राह पर चलने से इंकार करने के लिए मैंने उनपर आर्थिक निर्भरता खत्म कर दी थी 18 साल की उम्र में. इतिहास की गाड़ी में बैकगीयर नहीं होता... ऊबड़-खाबड़ रास्तों से इतिहास आगे ही बढ़ता है. अतीत में सारी महानताएं ढूढ़ने वाले लोग भविष्य के विरुद्ध साजिस में शरीक हैं.
आमीन
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