Sunday, May 4, 2014

क्षणिकाएं 19 (401-10)




401
सपनों की पेटेंटिंग नहीं होती,
हर किसी को आ सकते हैं ,
भोग-विलास भूत-प्रेत के सपने, नहीं फर्क पड़ता 
उन सपनों के मरने या जीने से
नहीं ये सपने सरोकार जनकवि पाश के
दुनियां बदलने के सपने हैं 
उनकी चिंता के विषय 
सपने मानव मुक्ति के 
शोषण-दमन से मुक्ति के सपने
सपने एक नई सुंदर दुनियां के
मुक्त होगी जिसमें सामूहिक सर्जन शक्ति
न होगा कोई भगवान न होगी कोई भक्ति
ऐसे सपने हर किसी को नहीं आते
उन्हीं को आते हैं होते हैं जो निष्ठावान
भूत-प्रेत के सपने तो बहुतों को आते हैं
कुछ तो दिन में ही मार्क्स-मार्क्स अभुआते हैं
देखेंगे ही इंक़िलाबी सपने सभी एक-न-एक दिन
मुक्त हो जायेंगे जब भूत-प्रेत की छाया से
ऐश-ओ-आराम की मोह-माया से 
मिलकर गढ़ेंगे सब तब एक नया बिहान
इंसान होंगे सब एकसमान
(ईमिः29.03.2014)
402
We live in a country where rape is acknowledged as the symbol of manliness and rapist a hero &
The MCPs take upon themselves to be country's moral guards.
We live in a country where all the greatness have happened in the past &
That is a conspiracy against the future
403
क्या कहती हैं चकित हिरणी सी ये आंखें
और चेहरे के जिज्ञासु भाव?
दिखता है इनमें जज़्बा कुछ कर गुजरने का
सड़ी-गली रीतियों को खंड-खंड करने का
हैं इनमें इरादे देने को नया आयाम इंसानी मर्यादा को
और ख़्वाब रचने का एक नई दुनिया
होगी जो मुक्त किसी भी अत्याचार से
भेदभाव के हर दुराचार से
न होगी गुंजाइश रंजिश-ओ-नफरत की
शोषण व वर्चस्व की फरेबी फितरत की

होंगे लब आज़ाद सभी के और सक्रिय सर्जना
सभी होंगे स्तंत्र न होगी कहीं कोई वर्जना
आयेगा इंसानी गतिविज्ञान में अब और नहीं ठहराव
पनपेंगे-बढ़ेंगे-फूलेंगे-फलेंगे इंसानी समानुभूति के भाव
आंखों में है अब भी उस सपने का शुरूर
लगता है यह लड़की खास कुछ कर गुजरेगी जरूर
(ईमिः07.04.2014)
(हा हा ये तो कुछ कविता सी हो गयी, मैं तो सभी को लाल झंडा पकड़ा देता हूं बाकी...... खूब पढ़ो-लड़ो-बढ़ो)
404
नहीं होती हिफाजत की जरूरत गुलाब को
कांटों से तो उसकी  दोस्ती है जन्मजात.
(ईमिः13.04.2014)
405
नहीं है कांटों का ताज राजकाज
मुल्क बेचने का साज है राजकाज
(ईमिः13.04.2014)
406
सच कहते हो मेरे बस की नहीं ये दुकानदारी, औकात इतनी भी नहीं कि कर सकूं खरीददारी
नहीं है चलाना लूट-खसोट की ये दुकान,बनाना है इसको मुनाफे का शमसान
बसायेंगे उस पर एक नया सुंदर संसार,गुलामी और गरीबी हो जायेंगी फरार
समानता के सुख का होगा आविष्कार , मुक्त होगी समाज की सर्जना अपार
न कोई अट्टालिका न मलीन बस्ती,मनाएंगे सभी भाईचारे की मस्ती
मिल-जुलकर सब कमाएंगे, मिल-बांटकर सब खायेंगे
क्षमता भर सभी श्रम-शक्ति लगायेंगे, जरूरत होगी जितनी उतनी सब पायेंगे
मानवता को होगा अनूठे सुख का आभास,. न होगा कोई स्वामी न ही कोई दास 
होगी नफरत नदारत औ मुहब्बत आबाद
. इंक़िलाब जिंदाबाद
(ईमिः14.04.2014)
407
ज़ंग खुद-ब-खुद एक मसला है दर्दनाक
नहीं हो सकती किसी मसले का समाधान
जीतता नहीं कोई होता बस रक्तपात अपरंपार
होती है इन्सानियत की शर्मनाक हार
मौत के घाट उतरती है लाशें उसतरफ की
हो जाती हैं शहीद लाशें इस तरफ की
करता है सरहद पार जब विमर्श
उलट जाता है शहीद-ओ-शैतान का निष्कर्ष
कुर्सी पर आता है जब भी जनता का खतरा
गाता है निज़ाम-ए-ज़र जंगखोरी का मिसरा
रोजी-रोटी को लिए तरसता है जब मजदूर-किसान
छोड़कर हल-ओ-हथौड़ा बन जाता है जवान
सिखाया जाता है उसको नहीं चिंतन उसका काम
मिलता है उसको जान लेने-देने का दाम
408
युद्धोंमाद
चाहते हैं जंग दोनों तरफ के जंगखोर
करते रहें राज जिससे हरामखोर
है यही शोषण की सभ्यता का इतिहास
गरीब ही गिराते रहे हैं गरीबों की लाश
आओ सुनते हैं शाहिर लुधियानवी की बात
निकालते हैं दिलों से युद्धोन्मादी जज़्बात
दिया था हबीब जालिब ने हमको यह सीख
जंगखोरी मंगाती है जनता से भीख
नहीं हैं खतरे में हमारे घर या वतन
खतरे में होता है लूट-खसोट का शासन
समझेंगे यह बात जब दुनियां के जवान
अपने ही जंगखोरों पर देंगा बंदूकें तान
मिलेगा दुनियां को रक्तपात से छुटकारा
गूंजेगा आकाश में अमन-ओ-चैन का नारा
(ईमिः14.04.2014)
409
लूट के औचित्य का उपादान है मतदान
निज अधिकारों के गिरवीकरण का विधान है मतदान
5 सालों के लिए उत्पीड़क चुनने-बदलने का नाम है मतदान
नागनाथ-सांपनाथ के विकल्प का समाधान है मतदान
चोर-उचक्कों का अभयदान है मतदान 
थैलीशाहों का ज़रखरीद गुलाम है मतदान
(ईमि/१७.०४.२०४)
410
लूट के औचित्य का उपादान है मतदान
निज अधिकारों के गिरवीकरण का विधान है मतदान
5 सालों के लिए उत्पीड़क चुनने-बदलने का नाम है मतदान
नागनाथ-सांपनाथ के विकल्प का समाधान है मतदान
चोर-उचक्कों का अभयदान है मतदान
थैलीशाहों का ज़रखरीद गुलाम है मतदान
(ईमि/१७.०४.२०४)

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