Raj K Mishra फतवे नुमा शैली में सांप्रदायिक पूर्वाग्रह के सिवा बिना किसी तर्क के या सही अर्थों में कुतर्क से मेरी मान्यताओं को के आपके खारिज करने पर मुझे कुछ नहीं कहना है। आप मेरी बातों को बिंदुवार तर्क से खारिज सकरते तो अच्छा लगता। मामला धार्मिक उत्पीड़न का नहीं किसी भी उत्पीड़न का होना चाहिए, खासकर गैर-मुस्लिम प्रावधान उत्पीड़ित को नागरिकता देने का मामला नहीं है देश के नागरिकों का सांप्रदायिक ध्रुवीकरण करना है जिस बात पर मेरे संक्षिप्त वक्तव्य में जोर दिया गया है, जिसे आप भी जानते हैं, अपने सांप्रदायिक पूर्वाग्रहों के चलते भले न माने। "पब्लिक इज डफर" के अपने वाक्य बेवजह मेरे मुंह में न ठूंसें। मेरे विरोध का लोकतंत्र या संविधान से कुछ नहीं लेना है आपके इस तरह के फतवे पर कुछ नहीं कहना है। बाकी मैं हताश हूं, और छात्रों को भड़काकर भड़ास निकालता हू, आदि बेसिर-पैर की आपकी गालियों पर भी मुझे कुछ नहीं कहना है, हमारे स्टूडेंट्स इंटेलीजेंट हैं और हमसे आपसे कम विवेकशील नहीं जोॆ उन्हें मैं या कोई भड़का सके. ऐसा सोचना दुराग्रह है।बाकी सरकार बदलना जनता का काम है, मेरे बस में होता तो ये सरकार आती ही नहीं। बहुमत का मतलब हमेशा सही होना नहीं होता, इंदिरा गांधी का भी दोनों सदनों में दो-तिहाई से अधिक बहुमत था तभी आपातकाल का अधिनायकवाद लागू कर सकीं, कड़े शब्दों का तो स्वागत है, लेकिन आप छोटा दिखाकर बड़ा बनने की कोशिस ही कर रहे हैं बिना यह जाने कि ऐसा करते हुए इंसान बौना दिखता है। प्रकाश करात की पार्टी से मेरा कुछ नहीं लेना है, इसे हमारे बीच का अंतिम संवाद माना जाए, आप जैसे विद्वान से बहस करने की न औकात है न समय।
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