Divyanshu Kumar पहली बात तो 'भगवान शिव नामी मिशर जी' का आपका संबोधन का कलुषपूर्ण हास्यबोध अवांछित है। हमने कौटिल्य के अर्थशास्त्र का सामाशास्त्री का भी अनुवाद पढ़ा है जो कि पुरातन है, आरपी कांगले का अनुवाद मानक माना जाता है। इनके अलावा 1990 के दशक में प्रकाशित एसएल रंगराजन का टीकायुक्त अनुवाद काफी अच्छा है जिसमें उन्होंने अध्यायों को आधुनिक संदर्भ में पुनर्व्यवस्थित किया है, मसलन युद्ध संबंधी सामग्री एक साथ कर दिया है। मेरी टिप्पणी में इसका खंडन कहीं नहीं है कि 'प्रजा के हितमें ही राजा का हित है'। एक प्रकाशनाधीन संपादित पुस्तक के लिए कौटिल्य पर अध्याय में मैंने एक खंड का शीर्षक 'कल्याणकारी राज्य' रखा है। बिना जाने, दिमाग को ताख पर रखकर "सेलेक्टिव अमनेशिया" से ग्रस्त जैसे निराधार आरोप लगाने से बचें। राजनैतिक उद्धेश्य से धर्म के इस्तेमाल के संदर्भ में मैंने यही कहा है कि कौटिल्य का अर्थशास्त्र भी इसका परामर्श देता है। तथ्यों के साथ खिलवाड़ आप कर रहे हैं, 'तथ्यों के साथ खिलवाड़' का आरोप लगाने के पहले खुद तथ्यों से अवगत हो लें। अपद्धर्म के रूप धार्मिक आस्था और अंधविश्वास के इस्तेमाल की बात आपको सामशास्त्री के भी अनुवाद में मिलेगी। सादर।
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