Kumar P Srivastava मेरी कोई ऐंठन नहीं है। सदभाव में और रोजी-रोटी के लिए में सेवा करने वालों को म्लेच्छ ही म्लेच्छ कहेगा। अपनी ऐंठन ठीक कीजिए, दूसरों के लिए गाली बकने वाले को वापस वही मिलता है। मेरी भाषा भ्रष्ट करने का भी अपराध आपका ही है। इज्जत न न तो दहेज में मिलती है न घूस में, कमानी पड़ती है और पारस्परिक होती है। कोई मुझसे कहता है कि मेरे छात्र मेरी बहुत इज्जत करते हैं तो मैं कहता हूं कि कौन सा एहसान करते हैं, मैंभी तो उनकी इज्जत करता हूं। आग्रह है कि जाति-धर्म से ऊपर उठकर इंसान बनें और हर किसी को अपनी ही तरह समान इंसान समझें।
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