छात्रों के प्रदर्शन पर गोली चलाने की हिमायत करने वाले एक शिक्षक को मैंने कहा कि शिक्षक को छात्रों की हत्या का हिमायती नहीं होना चाहिए तथा यह भी कि ज्यादातर लोग सभी प्रतियोगी परीक्षाओं सके खारिज होने के बाद शिक्षक हो जाते हैं। इस पर उन्होंने कहा कि अभी तक शिक्षक सनातनी ग्रंथों की विदेशियो द्वारा गलत व्याख्या गाते सुनाते रहे और छात्रों में हीन भानवना भरते रहे, वगैरह। उस पर:
कखग महोदय, ये ज्ञान कहां से मिला? ये सनातन आस्था क्या है? किसने किसको हेय माना? किस ग्वंथ की किन विदेशियों की किस गलत व्याख्य़ा को कौन गाते-सुनाते रहे? आप क्रूर, अमानवीय वर्णाश्रमी सनातन आस्था की बात तो नहीं कर रहे जो अपने ही समुदाय के एक बड़े हिस्से को जानवरों से भी बदतर मानता है? मैंने आपको नहीं कहा, इवि के ही नहीं तमाम विश्वविद्यालयों में सभी परीक्षाओं से खारिज होने के बाद बहुत से लोग तमाम तरीकों के इस्तेमाल से शिक्षक बन जाते हैं और आजीवन शिक्षकीय मर्यादा बनाने में असमर्थ कुंठित रहते हैं। छात्रों की हत्या का हिमायती निश्चित रूप से शिक्षक होने का अपात्र नहीं कुपात्र होता है। शिक्षक तथ्य-तर्कों के आधार पर बात करता है हवा में सनातन की विकृति की नहीं।
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