Friday, December 20, 2019

लल्ला पुराण 315 (नागरिकतानअधिनियम)

Raj K Mishra मैंने कंटेंपरेरी साउथ एसिया के लिए एक लंबा लेख लिखा है कल परसों छप जाएगा तो शेयर करूंगा और हिंदी अनुवाद भी करूंगा। संक्षेप में 2-4 वाक्य लिखता हूं। आज रात ही मुझे एक नियमित कॉलम पूरा करना है। पहली बात इस कानून की जरूरत क्या थी? असम के ओन19 लाख तथा कथित अवैध नागरिकों में आरसी में 4 लाख झारखंड-बिहार-उप्र या अन्य हिंदी भाषी मूल के हैं, पूर्व राष्ट्रपति फखरुद्दीन अहमद के परिवार के लोगों समेत 4 लाख बंगाली मुसलमान हैं और 11 लाख बंगाली हिंदू। वैसे तो धरती पर रहने वाला कोई मनुष्य अवैध नहीं है, धरती के उपहारों पर हर मनुष्य का साझा अधिकार है, खुद धरती पर किसी का नहीं। अब ये 11 लाख हिंदू गले की फांस बन गए तो इन्हें नागरिकता देने के लिए, सीएए का लॉलीपॉप। ये नागरिक अब शरणार्थी बनें, पहले 11 साल बाद नागरिकता पर विचार होता संशोदन के बाद प्रतीक्षा अवधि को 6 साल कर दिया गया। 6 साल शरणार्थी रहने के बाद कागज-पत्र इकट्ठा कर नागरिकता के लिए अप्लाई करें। खैर मैं इसका विरोध इसलिए कर रहा हूं कि धर्म आधारित नागरिकता का प्रावधान संविधान के धर्मनिरपेक्षता के मूल चरित्र के विरुद्ध है। मैं यह भी जानता हूं कि इसका विरोध कर हम हिंज़दुत्व की जनविरोधी ताकतों की ही मदद करेंगे क्योंकि इनके पास हिंदू-मुस्लिम बाइनरी के नरेटिव से चुनावी ध्रुवीकरण के अलावा मुल्क की संपदा देशी-विदेशी धनपशुओं के हवाले करना ही एकमात्र कार्यक्रम है। सरकारी उपक्रमों की बिक्री, बेतहाशा बेरोजगारी, मंहगाई, गैरबराबरी, उत्पादक अर्थव्यवस्था की अधोगति, चहेते धनपशुओं द्वारा बैंको पर डाका (एनपीए, बड़े बड़े कॉरपोरेटों का कर्ज बट्टेखाते में डालना) आदिनमूल मुद्दों से ध्यान भटकाकर हिंदू-मुसलिम नरेटिव के अपने जाल में फंसाना ही इनका मकसद हैं, हम जानते हुए भी, पूरे देश की तरह इनके जाल में फंसने को मजबूर या अभिशप्त हैं। लेकिन जिस तरह सारे उत्पीड़न को धता बताते हुए देश व्यापी विरोध हो रहा है, सड़क से संसद घिरतीवनजर आ रही है, और देर-सवेर इनकी उल्टी गिनती शुरू हो जाएगी। अभी इतना ही सादर। दूसरी बात मैं कभी इधर-उधर की बात नहीं करता शिक्षक हूं दृष्टांत से पढ़ाता हू्ं। अंतिम वाक्य दोषारोपणपूर्ण एवं अशिष्ट है। हां जितनी बुद्धि है उसी के हिसाब से जवाब दे पाऊंगा। ये बातें लेख में नहीं हैं, हिंदी अनुवाद करूंगा तो इसमें से कुछ शामिल करूंगा। सादर, धृष्टता लगे तो क्षमा। बाकी अंकुर वर्मा से सीधे संवाद कर सकते हैं, मुझे टैग करके मार्फत बनाने की जरूरत नहीं थी, मेरे लिए आप और वे तथा अन्य भी समान प्रिय हैंं, वे भी जिन्हें विमर्श में मेरी बातें अप्रिय लगती हों। पुनः सादर। अब टहलने निकलता हूं, ठंढ की वजह से सुबह मेडिकल प्रेस्क्रिप्सन की वाक नहीं कर सका।

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