Friday, December 6, 2019

मार्क्सवाद 194 (धर्म और सांप्रदायिकता)

हर धर्म में कट्टरवाद की संभावनाएं अंतर्निहित हैं, जहां तर्क खत्म होता है, वहीं कट्टरवाद शुरू, जरूरी नहीं वह हमेशा आक्रामक ही हो. ऐतिहासिक रूप से धर्म राजनैतिक और सामाजिक वर्चस्व का सर्वाधिक कारगर हथियार रहा है. धर्म की ही बैशाखियों पर वर्णाश्रम जैसी अमानवीय व्यवस्था हजारों वर्ष तक कायम रही. जो कट्टरवादी नहीं हैं, वे भी राजनैतिक ध्रुवीकरण के शिकार होते हैं. भारत में भाजपा और पाकिस्तान में मुस्लिमलीग को मतदान करने वाले सारे कट्टरपंथी नहीं होंगे. सांप्रदायिक संगठन धार्मिक नहीं हैं न ही धार्मिकता से इनका कुछ लेना-देना है. इनका मक्सद धर्मोंमाद फैलाकर कर राजनैतिक लामबंदी है. इसलिए कट्टरवाद से लड़ने के लिए जरूरी है कि धर्म; रीति-रिवाज तथा धार्मिक मिथक-किंवदंतियों एवं मूल्य-मान्यताओं; नैतिक-अनैतिक के मानदंडों पर खुली, आलोचनात्मक बहस हो. धर्म के नाम पर जब जन पर अत्याचार हो रहा हो तो धार्मिक भावनाओं के नाम पर इस पर बहस से बचना सामाजिक-आर्थिक रूप से घातक है.

07.12.2016

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