Tuesday, December 17, 2019

लल्लापुराण 311 (वाम का भजन)

Markandey Pandey माफ कीजिएगा, आपका यह कमेंट नहीं देखा, मैंने यह कतई नहीं कहा कि और लोग इंसान नहीं होते, सारे ही दोपाये (होमोसेपियंस) इंसान होते हैं और चिंतन शक्ति के चलते सभी में बुद्धिजीवी होने की संभावना होती है लेकिन वही हो पाते हैं जो अपने विचारों के सुगठित कर अभिव्यक्ति देते हैं। मैं इंसान बनने की बात व्यंजना में कहता हूं जिसका मतलब होता है जातीय, सांप्रदायिक मिथ्या चेतना से मोगभंग। बिल्कुल एक लोहार या बड़ई काम यान ज्ञान एक प्रोफेसर या पत्रकार केकाम या ज्ञान से कम महत्वपूर्ण नहीं होता। जिस तरह एक लोहार प्रोफेसरी या पत्रकारिता नहीं कर सकता उसी तरह एक प्रोफेसर या पत्रकार लोहार या बढ़ई का काम नहीं कर सकता। मैं जातीय या संप्रदायिक चेतना को मिथ्या चेतना मानता हूं, आप मुझसे असहमत हो सकते हैं इसीलिए एक विवेकशील इंसान बनने के लिए जन्म के संयोग की अस्मिता की मिथ्या चेतनाओं से मुक्ति जरूरी मानता हूं, मैं तो अब प्रोफेसर नहीं, पूर्व प्रोफेसर हूं। सादर। बिना संदर्भ वाम वाम की गुहार लगाने को व्यंजना में भजन गाना कहता हूं। यदि फेसबुक से किसीको निष्कर्ष निकालना हो तो लगेगा कि वामपंथ मुल्क में बड़ी ताकत है जब कि है ही नहीं, क्यों नहीं है वह अलग मुद्दा है। यदि मेरी बातों से आहत हुए हों तो क्षमा करें। सादर।

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