Jitendra Kumar
"समानता एक गुणात्मक अवधारणा है, मात्रात्मक इकाई नहीं", इस वक्तव्य की दार्शनिक व्याख्या फुर्सत में करूंगा। अभी दो दृष्टांत ही दूंगा। मैं जब जूनियर हाई स्कूल में पढ़ता था तो एक शिक्ष सब बच्चों से पूछने लगे कि कौन क्या बनना चाहता था? अब 11-12 साल के गांव के बच्चे को क्या मालुम की भविष्य की क्या क्या संभावनाएं हैं या उसकी क्या क्षमता या रुचियां हैं। विकास के उस चरण तथा उस सांस्कृतिक परिवेश में एक्सपोजर अत्यंत सीमित था, 7-8 किमी दूर मिडिल स्कूल था।1972 में जब मैं इलाहाबाद पढ़ने गया तो विश्वविद्यालय पढ़ने जाने वाला मैं अपने गांव का पहला लड़का था। किसी ने दरोगा बनने की बात की तो किसी ने बीडीओ, आदि। मुझे समझ नहीं आया मैं क्या बनना चाहता था। मैंने कह दिया कि मैं अच्छा बनना चाहता था। अब अच्छा तो अपने आप में कुछ होता नहीं, अच्छा तो विधेय ( predicate) है, अच्छा क्या? अच्छा विद्यार्थी; अच्छा मित्र; अच्छा शिक्षक; ...। अच्छा, जो भी करें लगातार अच्छा करने से होता है। अच्छा करने का कोई फॉर्मूला तो है नहीं, खास परिस्थिति में दिमाग के इस्तेमाल से तय करना होता है। खैर भूमिका लंबी हो गयी। अभी असमानता के एक कुतर्क के खंडन के बाद दो दृष्टांत से अपनी बात फिलहाल खत्म करके बाकी बाद में। असमानता के पक्ष में अक्सर लोग 5 उंगलियों का दृष्टांत देते हैं। पांचों भिन्न हैं, श्रेष्ठतर या निम्नतर (छोटी या बड़ी) नहीं। भौतिक लंबाई उन्हें छोटी बड़ी नहीं बनातीं। द्रोणाचार्य को एकलव्य की आकार में सबसे छोटी उंगली (अंगूठा) सबसे महत्वपूर्ण लगी कि उसे ही कटवा लिया। असमानता के सारे सिद्धांतकार विभिन्नता को असमानते के रूप में परिभाषित करते हैं तथा गोल-मटोल तर्क (circular logic) से उसी परिभाषा के इस्तेमाल से विभिन्नता को असमान प्रमाणित करते है।
जब मैं बाप बना तो सोचने लगा अच्छा बाप कैसे बना जा सकता है? मैं आवारा आदमी और इसका गणित का कोई फॉर्मूला होता नहीं। आप अपने को दूसरों की जगह रखकर बेहतर निर्णय पर पहुंच सकते हैं। मेरे दिमाग में अंग्रेजी में 3 बातें आयीं: 1. Treat them (her) democratically, at par and transparently, parity is a qualitative concept, not qualitative entity. (उनके साथ जनतांत्रिक, पारदर्शी एवं समानता का व्यवहार करें।) 2. Do not torture them by over-caring, being over protective and over expecting (अत्यधिक देखभाल, अत्यधिक सुरक्षा की चिंता तथा अत्यधिक अपेक्षाओं से उन्हें तंग न करें।) 3. Learn to respect child right and child wisdom. (बच्चों के अधिकार और उनकी सापेक्ष बुद्धिमत्ता का सम्मान करें।)
हमारे काम की यहां पहली ही बात है।
मेरे पुराने छात्र मिलते थे तो कई इस बात के लिए आभार व्यक्त करते कि मैंने उनके साथ मित्रवत व्यवहार किया। मैं उन्हें कहता कि दो बाते हैं: 1. आपने मेरी कोई फसल नहीं काटी है कि शत्रुवत व्यवहार करूं। 2. ऐसा मैं अपने स्वार्थ में ही करता हूं क्योंकि किसी भी संबंध में वास्तविक आनंद तभी आता है यदि रिश्ता जनतांत्रिक, पारदर्शी एवं समानतापूर्ण हो। समानता एक गुणात्मक अवधारणा है। बहुत से शिक्षक और अभिभावक समता का सुख समझ नहीं पाते तथा बच्चों से मित्रता नहीं करते, खुद भी तनाव में रहते हैं, बच्चों को भी तनाव में रखते हैं। आप अच्छे शिक्षक तभी बन सकते हैं यदि छात्रों के साथ रिश्ते में आनंद आए।
अभी इतना, बाकी बाद में।
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