हर निशा एक भोर का ऐलान है। 2019 मुल्क के इतिहास का अंधेरी सुरंग का दौर था खत्म होते होते सुरंग खत्म होती दिखी, देश की जवानी आंदोलित हो उठी, युवा उमंगों की लहर देख बुढ़ापा भी लहराने लगा और इतिहास को एक रोशन रास्ता दिख रहा है। उम्मीद है 2020 के दशक की शुरुआत इतिहास में नया सुर्ख रंग भरेगा। दुर्भाग्य से पिछले 2 दशकों से सांप्रदायिक ध्रुवीकरण मुल्क की राजनीति में निर्णायक भूमिका अदा कर रहा है। असम में 'घुसपैठियों' को खदेड़ने के अटल बिहारी बाजपेयी के आह्वान पर 1983 में नेल्ली नरसंहार के ध्रुवीकरण की विरासत को भुनाने के लिए उसी नारे के साथ मोदी-शाह जोड़ी ने 12 8000 वहां नागरिकता रजिस्टर अभियान शुरू किया, घोषित 19 लाख अवैध नागरिकों में 15 लाख गैर-मुसलिम निकले जिसने संघ परिवार की ध्रुवीकरण का समीकरण गड़बड़ा दिया। 15 लाख गैर मुस्लिम नागरिकों को शरणार्थी बनाकर भविष्य में नागरिकता का लालीपॉप देकर नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के जरिए नफरत की सियासत को अंजाम देने के मंसूबे के विरुद्ध पर असम के आवाम के पद चिन्हों पर जामिया के छात्रों ने जंगे-आजादी का ऐलान कर दिया तथा पुलिस के बर्बर दमन का बहादुरी से सामना किया। जामिया के छात्रों पर बर्बरता के खिलाफ पूरा मुल्क आंदोलित हो उठा। मुसलमानों को निशाना बनाकर उप्र सरकार इसे सांप्रदायिक रंग में रंगने की कोशिस कर रही है लेकिन उनकी चाल आवाम समझ गया है। अब दमन कितना भी बर्बर हो लेकिन जनसैलाब का जो दरिया झूम के उट्ठा है वह अब पुलिसिया दमन के तिनकों से न रोका जाएगा। आजाद भारत में इतनी व्यापक भागीदारी का यह पहला आंदोलन है। इस आंदोलन की खास बात यह है कि इसकी अगली कतारों में महिलाएं हैं। ओखला के शाहीन बाग में कड़कती ठंढ में दिन-रात स्त्रियां धरना दे रही हैं। कर्नाटक में पुरुषों पर पुलिसिया दमन से मोर्चा लेने महिलाएं उनके गिर्द घेरा बनाकर प्रदर्शन कर रही हैं। पुलिस की बर्बरता 2 दर्जन जानें ले चुकी है, लेकिन आवाम फैज की पंक्तियां -- सर भी बहुत बाजू भी बहुत, कटते भी रहो बढ़ते भी रहो -- दुहराते बढ़ता ही जा रहा है।
मुल्क के इतिहास में इस नए बिहान में अंधेरी सुरंग से निकल कर 2020 से शुरू एक रोशन, अमन-चैन के दशक और क्रांतिकारी शताब्दी की यात्रा की कामना तथा आशा के साथ मुल्क को नए साल की बधाई