Pushpa Roy संस्कारों के मूल का समग्रता में विरोध करना पड़ेगा. हमारे संस्कार ब्राह्मणवादी, मर्दवादी हैं. वास्तविकता खंडों में नहीं, समग्रता में होती है। मैं कपड़ों के बारे में ही नहीं कह रहा हूं, सोच के बारे में. स्त्रियां संस्कारों के चलते कई बातें 'स्वयं' माना करती हैं. यह स्वयं स्वाभाविक स्वयं न होकर समाजीकरण का परिणाम है. मुक्ति समाज के स्थापित मूल्यों को तोड़कर ही संभव है. पारदर्शिता से क्या नए बंधन मुमकिन हैं? मर्दों को नारी देह के बारे में सोच बदलनी पड़ेगी, नारी को समान इंसान समझना पड़ेगा, देह नहीं. जिसका जो मन करे पहने, मर्दवादी विकृत कुंठाओं के लिए नारी देह नहीं मर्दवादी सोच जिम्मेदार है.
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