देश में एक नए वामपंथ की जरूरत है, वामपंथियों और जनवादी अस्मितावादियों दोनों को पुनर्चिंतन करना पड़ेगा. सामाजिक न्याय और आर्थिक न्याय के संघर्ष परस्पर विरोधी नहीं पूरक हैं. शासक वर्ग और शासकजातियां एक ही रही हैं और उनका वैचारिक वर्चस्व विद्रोह की संभावनाओं को कुंद करता रहा है. वाम को सामाजिक न्याय के संघर्ष के एजेंडे को आर्थिक न्याय के एजेंडे से जोड़ने और अस्मिता के संघर्ष की चेतना के जनवादीकरण की जरूरत है.
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