Thursday, March 2, 2017

कलम का मिजाज

लोगों की ग़मख़ारी है मिज़ाज हमारे कलम का
नहीं है मोहताज ये गांव-गुरबे की इज़ाजत का

करते हों लोग जब झूठ और फरेब की इबादत
लिखता ही रहेगा कलम हमारा हर्फ-ए-सदाकत

भूल गए हो लोग जब करना सच्चाई का स्वागत
हमारा ही जिम्मा है लिखना इबादत-ए-बगावत

न डर है हमको किसी खुदा का न ही नाखुदा का
लिखना जंग-ए-आजादी फितरत हमारे कलम का

नहीं चाहत है किसी पद-प्रतिष्ठा-पुरस्कार का
मुखालफत करता है ये हर लूट-अत्याचार का

लिखा नहीं कभी किसी शह की महिमा
यही है कलम की धार की निर्भीक गरिमा

कहती हों आंखें जबें तकलीफ के उमड़ते समंदर का फसाना
नहीं लिख सकता कलम माशूक की जुल्फ के जलवे का तराना

फैला हो सारी धरती पर जब दोजख का कहर
नहीं लिख सकता इसे जन्नत का नायाब शहर

लोगों को फरिश्ता ही क्यों न लगे कोई बहुरूपिया
किसी जोकर को युगपुरुष यह कलम नहीं लिखता

इबादत में झुके चारणों का जो कुछ भी हो कहना
इस कलम को है ऐसे ही बने रहना ऐसे ही लिखना
(ईमि:01.03.2017)

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