Satyaprakash Gupta सही कह रहे हैं, सुकरात की अड्डेबाजी के उनके शिष्य उन्हें बचाने में कोई कसर नहीं छोड़े. जहां एक तरफ उंमादी भीड़ सुकरात की मौत के नारे लगा रही थी वहीं दूसरी तरफ सुकरात के समर्थक भी सत्ता के विरुद्ध नारे लगाते हुए सुकरात जिंदाबाद भी कर रहे थे. कुतर्क का बहुमत तर्क पर; धार्मिक आस्था विवेक पर; सत्ता की ताकत विद्रोह के दर्शन पर भारी पड़ गए थे. वर्तमान के काफी काम हैं, इसलिए प्राचीन यूनान में विचरण की लालच रोकता हूं. मेरी सुकरात के बारे में किंवदंतियों के अलावा पहली जानकारी एक सुखद संयोग से हुई. मैं बीयस्सी का छात्र था और कोर्स के अलावा गुलसन नंदा, कुश्वाहाकांत, इब्ने शफी बीए, शरलॉक होम्स के लेखन से ही थोड़ा बहुत परिचित था. एक बार ट्रेन में बीयचयू के एक सहयात्री की एक किताब छूट गई, जब तक मेरी निगाह पड़ती ट्रेन चल पड़ी, खिड़की से मेरी आवाज के जवाब में उनके इशारे को मैंने समझा कि रख लो. कवर पर कुछ अमूर्त कलाकारी की पृष्ठभूमि में उलझे बाल, बेतरतीब दाढ़ी वाले एक संत से व्यक्ति की तस्वीर. प्लेटो लिखित, 'अपॉलजी' जो सुकरात के मुकदमें की कहानी है. बाकी 40-45 मिनट की यात्रा में पढ़ना शुरू किया. भाषा काव्यमय लगी और घर पहुंचकर एक ही बार में पढ़ डाला, वैसे भी बहुत पतली सी ही है. पता नहीं कितना और क्या समझा था लेकिन पहली बार लगा कि विज्ञान, विज्ञान के विषयों से परे भी है. सही कह रहे हैं, सुकरात को तो मार डाला गया लेकिन जब तक सत्य के लिए संघर्ष चलेगा सुकरात याद किए जाते रहेंगे और अंततः सत्य की विजय के बाद भी सुकरात के तर्क वातावरण में गूंजते रहेंगे.
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment