हम तो कहते रहेंगे स्याह को स्याह सफेद को सफेद
पहुंच जायें चाहे शहर के सारे ज़रदार थाने
नायक हैं हमारे विप्लवी शायर गार्सिया लोर्का
संगीनों के खिलाफ गाते थे आज़ादी के तराने
लगा रहे थे वे फासीवाद मुर्दाबाद के नारे
खड़े थे सामने फासीवादी हत्यारे बंदूकें ताने
(ईमि: 21.03.2017)
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