यह इस कविता पर कमेंट था, मुझे लगा इसे इसकी भूमिका बना दूं.
'शुक्रिया साथियों. इस कविता का संदर्भ देना वाजिब लगता है. हम लोगों का एक खास दोस्त और साथी था (था इसलिए कि 25 साल पहले एक सुबह अपने कमरे से निकला और आज तक कुछ पता नहीं), राजेश राहुल. उसकी एक सुंदर कविता की याद आ गई. 'मुझे अच्छी लगती हैं ऐसी लड़किया'. उसकी कई और खूबसूरत यादें हैं, लेकिन फिर कभी. कविता की पंक्तियां तो नहीं याद आयीं, मैंने सोचा देखूं मुझे हमारी अगली पीढ़ी के कैसे लड़के लड़कियां अच्छे लगते हैं. एक खंड और जोड़ दिया.'
मुझे अच्छे लगते हैं ऐसे बच्चे
जो अनुशासन की माला
जपते हुए नहीं तोड़ते हुए बढ़ते हैं
जो अंकल के चरणस्पर्श के बाप के आदेश को
नज़रअंदाज़ कर देते हैं
जो खाते हैं वर्जित फल
करते हैं पार निषेधों की दरिया
और तलाशते हैं नए द्वीप
मुझे अच्छे लगते हैं ऐसे बच्चे
जो निडर हो
हां को हां और ना को ना कहते हैं
जो सवाल करते हैं और जवाब मांगते हैं
जवाब का भी तर्क मांगते हैं
और तर्क में अर्थ ढूंढ़ते हैं
मुझे अच्छे लगते हैं ऐसे बच्चे
जो सवाल करते हैं
विरासत के संस्कारों पर
पूर्वजों की नैतिकता के विचारों पर
और रचते हैं नैतिकता के नए सुसंगत उद्यान
मुझे अच्छे लगते हैं ऐसे बच्चे
जो नहीं खोजते महानता का स्वर्णयुग किसी अतीत में
भविष्य की महानता के सपने देखते हैं
और जानते हैं इतिहास के गतिविज्ञान का नियम
कि हर अगली पीढ़ी तेजतर होती है अमूमन
मुझे अच्छे लगते हैं ऐसे बच्चे
जो लकीर के फकीर नहीं होते
सिर पर परंपरा का बोझ नहीं ढोते
जो नहीं पीटते पूर्वजों के गौरव का नगाड़ा
नए गौरव रचते हैं
विद्रोह करते हैं
क्योंकि विद्रोह श्रृजन की अनिवार्य शर्त है.
(ईम: 17.03.2017)
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