फर्जी मुठभेड़ की एक पोस्ट पर एक गाली गलौच के कमेंट पर मैंने आदतन पूछ लिया कि भाषा की तमीज शाखा में सीखा या मां बाप से. न मानने पर मैंने लिख दिया पंजीरी खाकर भजन गाइए. एक अन्य सज्जन मेरी इस भाषा पर लानत भेजने लगे. उस पर मेरी चिप्पणी:
आप को भाषा की तमीज में कुछ गड़बड़ लग रहा होगा तभी तो इस सवाल से बौखला रहे हैं. मुझसे पूछो कहां से सीखा? मां-बाप से सीखी भाषा की ब्राह्मणवादी तमीज 13 साल में जनेऊ तोड़ने के साथ भूलना शुरू कर दिया था, बाकी संघर्षों में साथियों के साथ सीखा. भक्त बिना कथा जाने (होती ही नहीं) सत्यनारायण की कथा सुनकर पंजीरी खाकर पंडित के पीछे भजन गाता रहता है, इसमें आपको क्या आपत्तिजनक है? बाकी अपने प्रोफेसर होने पर शर्म तो आती है कि विश्वविद्यालयों में पढ़-लिख कर भी तमाम लोग बाभन से इंसान नहीं बन पाते. शर्म एक क्रांतिकारी अनुभूति है. वैसे ये सवाल आपसे भी पूछता हूं कि भाषा ती तमीज कहां से सीखा? शाखा में या मां-बाप से?
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