Thursday, March 2, 2017

मेरी बेटियां

इन बहादुर बेटियों ने सीख लिया है लड़ना
छोड़कर डरना
ये लड़ती हैं पढ़ने के लिए
प्यार करने के लिए
ये लड़ती हैं डर को डराने के लिए
आज़ादी के तराने के लिए
ये जान गई हैं जंगखोरों की हकीकत
ये लड़ती हैं जंगखोरी के खात्मे के लिए
ये जान गई हैं यह बात
जंगखोर करता है इसलिए उत्पात
हरामखोर कर सके जिससे हम पर राज
ये यह भी जान गई हैं
कि डर-डर कर नहीं जी जाती जिंदगी
डर-डर कर रेंगती है जिंदा लाश
ये लड़ती हैं जिंदा लाशों में जान फूंकने के लिए
ये लड़ती हैं आजादी के लिए
भाई-बाप से; जात-खाप से
ये लड़ती हैं आजादी के लिए
मर्दवाद के पाप से
बलात्कारियों की खुराफात से
बंद कर आंचल से ढकना सर
बना लिया है उसे जंग-ए-आजादी परचम
डर गया है इस परचम से मर्दवाद का नरपिशाच
बता रहा है इसे सीता-सावित्री की परंपरा पर कलंक
कर रही हैं चकनाचूर ये बुत सीता सीवित्री के
गढ़ने को नई मूर्तियां रोज़ा लक्ज़म्बर्ग की
लड़ती हैं बहादुर बेटियां
डर को दफ्न कर निडर जमाने के लिए
सोचा था लिखने को यह कमेंट गद्य में
देखकर लहराता परचम आंचल का
आवारगी में भटक गया कलम पद्य में
(ईमि: 02.03.2017)
भटक गया कलम

No comments:

Post a Comment