हमारे बचपन में, गांव का हर बच्चा 7-8 साल तक होते-होते ठीक-ठाक 'तैराक' हो जाता था. हमारा गांव तो नदी के किनारे है, लेकिन हर गांव में तालाब पोखरे होते थे. जब मैं बहुत छोटा था और बड़े लड़कों को तैरता देख और खुद न तैर पाने पर मुझे अच्छी तरह याद है, मेरे मन में आया कि जब ये तैर ले रहे हैं तो बड़ा होकर मैं भी तैर लूंगा. और एक बार आ गया तो बहुत देर तक नदी में रहने की डांट से बचने के बहाने बनाता था. वैसे दादी और मां की डांट में गुस्सा कम दुलार ज्यादा होता था. मैं अपने स्टूडेंट्स को भी कहता हूं कोई और जो काम कर सकता है, वह भी कर सकती/सकता है.
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