दुनिया की सारी कम्युनिस्ट पार्टियां दिशाहीन और अप्रासंगिक हो गयी हैं क्योंकि उनके नेताओं ने मार्क्स पढ़ना बंद कर दिया है. अब एक नए इंटरनेसनल और नए कम्युनिस्ट आंदोलन की जरूरत है जो संघर्ष और निर्माण के आंदोलन एकसाथ चलाए. आर्थिक मुक्ति की शर्त है सामाजिक मुक्ति. ब्राह्मणवाद अपने बदले हुए देशभक्ति के रूप में आज भी काफी प्रभावशाली है. धर्म पर प्रहार किए बिना ब्राह्मणवाद से हर स्तर पर लड़ना है. कॉरपोरेटी दुश्मन सत्ता और संसाधन से संपन्न है, हमारे पास सिर्फ जनबल का संबल है उसे तैयार करना है.
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