यह 25 साल का नवजवान कौन था जिसकी लाश देवली कैंट में पाई गया? यह वही सानिक है यह वही सैनिक है जिसका वीडियो सोसल मीडिया पर वाइरल हुआ जिसमें सेना के अधिकारियों द्वारा सिपाहियों से घर के निजी नौकर का काम कराने की शिकायत की गई थी. इस सैनिक को किसने मारा? क्या सेना में व्याप्त अनाचार को सार्वजनिक करना देशद्रोह है? गौरतलब है कि सिपाहियों से घरेलू नौकर का काम कराने की परंपरा अंग्रेजी राज के जमाने से ही चली आ रही है. सिर्फ सेना में ही पुलिस महकमा भी इनसे बहुत पीछे नहीं है. ऐतिहासिक रूप से रोजी-रोटी के लिए सेना में भर्ती होने वाला गरीब नवजवान वेतन-पेंसन के बदले वर्दी की ताकत का वहम-ओ-गुमान पहन अपनीी अंतरात्मा (संवेदना का अधिकार) और विवेक (सोचने का अधिकार) अनुशासन की मूर्ति पर समर्पित कर देता है. वह सोच नहीं सकता सिर्फ दूसरों की सोच को अपनी मान हुक्म तालीम करता है. अपने अधिकारियों पर सवाल, वह भी सेना में श्रेणीबद्धता के स्थापित रिवाज या उनके दुराचार पर सवाल करना घोर अनुशासनहीनता का मामला है, सैनिक के लिए सोचना अपने आप में अनुशासनहीनता का कृत्य है. इससे एक खतरनाक मिशाल कायम होगी. देखा-देखीऔर भी सैनिक सोचने लगेंगे. सैनिक सोचने लगेंगे तो सेना के अभेद्य अनुशासन के किले में छेद हो जाएगा, दरार पड़ जाएगी, दरार के फैलने का खतरा पैदा हो जाएगा. सेना के अनुशासन का किला धसका तो राष्ट्र की सुरक्षा खतरे में पड़ जाएगी. जरा सोचिए, यदि सैनिक सोचता तो मुट्ठी भर अंग्रेज इतने बड़े देश को गुलाम बनाकर 200 सौ साल तक लूट कर देश को कैसे विकसित करते? और हमारे भूतपूर्व, अर्थशास्त्री प्रधान मंत्री को इसके लिए आभार जताने का सुअवसर कैसे मिलता? 1857 में भारत कीअंग्रेजी फौज के सैनिकों ने सोचना शुरू किया तो किसानों के साथ मिलकर (वे भी किसान-बेटे थे) उन्होंने ऐसा गदर मचा दिया कि यदि सिंधिया-निजामों की सेनाएं विद्रोही सेनाओं को न रोकती, तो सोचिए गोरे प्रभुओं को सभ्यता का भार ढोने के अपने कर्त्वय से 90 साल पहले ही वंचित हो जाते. एक सीआरपीयफ का सिपाही भी सीमा पर देशभक्ति दिखाना छोड़ सोचना शुरू कर दिया था. भोजन जैसी तुच्छ बात को लेकर अधिकारियों के भ्रष्टाचार को उजागर कर सुरक्षा बलों का मोराल डाउन कर राष्ट्र की सुरक्षा पर खतरा पैदा करने का काम किया. यह भी कम अनशासनहीनता नहीं थी, लेकिन वह सिपाही जिंदा है. क्या पता कुछ और सैनिक भी अनुशासन के कर्तव्य और भय को धता बता सोचने न लगें. राष्ट्र की सुरक्षा के लिए सैनिक के सोचने पर पाबंदी अनिवार्य है.
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