जर्मनी में व्यवस्था वर्णवादी नहीं नस्लवादी थी, जैसाकि अभी संघ के नेतृत्व में यहां बन रहा हूं. मैं कई लेखों में लिख चुका हूं कि यद्यपि जातीय उत्पीड़न के खिलाफ सबसे जुझारू संघर्ष वामपंथियों ने किया लेकिन मार्क्सवाद को विज्ञान के रूप में न अपना कर मॉडल माना, और जन्म आधारित सामाजिक विभाजन को अलग एजेंडा नहीं बनाया. कुलीनता-अकुलीनता की लड़ाई यूरोप में बुर्जुआ डेमोक्रेटिक आंदोलन ने खत्म कर दिया था, यहां वर्णाश्रमी सामंतवाद (एसियाटिक मोड) के विरुद्ध कबीर द्वारा शुरू नवजागरण अपनी तार्किक परिणति तक नहीं पहुंचा. अब जरूरत वर्ण-वर्ग की मिलीजुली ताकत के विरुद्ध वर्ण-वर्ग संघर्ष को एक साथ जुड़ना पड़ेगा. हम इतिहास की अंधेरी सुरंग में से गुजर रहे हैं, मिली-जुली ताकत से ही सुरंग से बाहर उजाले में निकला जा सकता है.
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment