जंग चाहता जंगखोर
ताकि राज कर सके हरामखोर
चाहते हा अगर अमन-ओ-चैन समाज
खत्म करना पड़ेगा जंगखोरी का राज
न खतरे में है मेरा घर न खतरा वतन को
खतरा है निरंतर जनवाद का निज़ाम-ए-जर को
नहीं त्रस्त जंगखोरी से महज हमारे सरहद
खेतों से भी आने लगी है अब तो जंग की आहट
पड़ोसियों में होने लगी दुश्मनी की सुगबुगाहट
छाने लगा है गांवों में खौफ का शाया
मिलेगी जंगखोरों को मतों की माया
तोड़ों लोगों ये रक्त रंजित हाथ
कर दो इन्हें अकेला मिले न किसी का साथ
(ईमिः14.04.2014)
लड़ कौन रहा है?
ReplyDeleteबस यही नहीं पता है :)
लड़-मर रहा है गरीब, मजे ले रहे हैं अमीर
ReplyDelete