Wednesday, April 23, 2014

शाहिल तक पहुंचने का जज़्बात

है अगर शाहिल तक पहुंचने का जज़्बात
दरिया की लहरें सदा देंगी साथ
दम टूटना किनारे पहुच कर महज संयोग है
हार-जीत तो परिस्थितियों का याग है
अहम है मगर संघर्षों की गुणवत्ता 
और उद्देश्य की जनपक्षीय महत्ता
है वज़ूद जिसका होगा ही अंत उसका 
होगा नहीं मगर अंत इतिहास का
सांसें तो होंगी ही बंद एक-न-एक दिन
कीमती है ज़िंदगी का एक-एक दिन
(ईमिः24.04.2014)

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