Shivam Singh एक अच्छा शिक्षक वह होता है जिसकी बात सर के ऊपर से नहीं सर के अंदर से गुजरे, मुझ जैसे मूढ़ की भी समझ में आ जाये. जो मूर्ख-फरेबी किस्म के शिक्षक हैं वे अपनी कमी को छिपाने के लिए गोल-मटोल बातें करते हैं और विद्यार्थी की समझ में नहीं आता तो कहता है कितने अच्छे शिक्षक हैं इनकी कोई बात ही समझ में नहीं आती, यानि पढ़ाना व्यर्थ गया. गुरू जी जरा सरल भाषा में समझा दीजिए . मैं तो जो विषय यमफिल के छात्रों को समझाता हूं, वही किसान-मजदूरों की स्टडी क्लास में भी समझा देता हूं जो घंटों चलती है और पर्याप्त आनंद आता है.
Vibha Pandey हर प्रतीक का निहितार्थ होता है. आप लोग भाग्यशाली हैं जो १-२ पीढी बाद पैदा हुईं लेकिन जो अधिकार और आज़ादी आपको प्राप्त है या आपने वर्चस्व के प्रभाव में सेवा भाव से त्याग रखा है वह पिछली पीढ़ियों के सतत संघर्ष का नतीज़ा है. दान वस्तु की जाती है व्यक्ति नहीं.
Sanjai Singh कन्यादान को क्यों श्रेष्ठ मना गया है, बालक दान क्यों नहीं? कन्यादान जिसे करते हैं वह दामाद हुआ. मतदान कन्यादान जैसा है तो उम्मीदवार दामाद जसा हुआ. मान्यवर कोइ कर्मकांड निरपेक्ष नहीं होता. वर्चस्व की विचारधाराएँ रीति-रिवाजों; कर्मकांडों; मिथकों और दृष्टान्तों के माध्यम से वर्चस्व को बरकरार रखता है और जागरूकता हासिल करने के साथ, अधीनस्थ इन रीति-रिवाजों; कर्मकांडों; मिथकों और दृष्टान्तों को तोड़ कर वर्चस्व को समाप्त करने का प्रयास करता है. आज जब लडकिया प्रज्ञा और काम के सारे मिथकों को तोड़ रही हैं और हर क्षेत्र में लडकों पर भारी पद रही हैं तो रीति-रिवाजों और एक पतनशील संस्कृति के ठेकेदार बौखला कर मर्द्वादी (पितृसत्तात्मक) प्रतीकों और रीरेतिरिवाजों को बचाने के प्रयास में लग गए. नारी प्रज्ञा और दावेदारी का जो दरया झूम के उत्था है तिनकों से न टाला जाएगा.
Vibha Pandey मैं समझ सकता हूँ, मान की कमी कोइ नहीं पूरा कर सकता, इस उम्र में भी मुझे भी खलती है मान की कमी. मैं २ बेटियों का फक्र्मंद बाप हूँ,मुझे पिरिवत मित्र मान सकती हैं. वजूद की स्वतन्त्र तलाश आत्म-संबल और आत्म-विस्वास को मजबूत करता है. मैं लड़का था और पितृसत्तात्मक समाज में लड़कों को लडकियों से कम समस्या होती है लेकिन मैं भी किसान घर से निकला था और १-१८ की उम्र में विचारों की स्वतंत्रता की खातिर घर से आर्थिक सम्बन्ध विच्छेद लिया था. घर से बाहर रावनों में ही नहीं रामों से भी खतरा है. लेकिन जो परिस्थियां आयें साहस और आत्मबल से निपटा जा सकता है. मैंने १-२ पीढी बाद पैदा होने से भाग्य की बात इस लिए कह रहा हूँ कि सतत नारी संघर्षों के फलस्वरूप आपकी पीढी की लड़कियों को जो अपेक्षाकृत आजादी और अधिकार हासिल हैं वे हमारी पीढ़ी की लड़कियों को नहीं हासिल थे. पढो-लड़ो-बढ़ो. मेरी शुभकामनाएं.
Anita Sharma कन्या दान महा दान इसलिए माना जाता है कि मर्दवादी संस्कृति में कन्या को मूल्यवान वास्तु मना जाटा है जिसे वेटलिफ्टिंग या तीरंदाजी की काबिलियत से पुरस्कार स्वरुप भी हासिल किया जा सकता है और पुरस्कार पाने वाला अपने भाइयों के साथ मिलकर भी उस वास्तु का उपभोग कर सकता है. अआप का मतलब है कि लोग वोट देने निकलें तो अपने बच्चों का भविष्य जनसंहार और बलात्कार के अस्वमेध रथ पर सवार अम्बानी और अदानी के एक दलाल को सौंप दें जिसने किसानों आदिवासियों को कुचल कर उनकी जमीनी अपने थैलीशाह पालकों अदानियों-अम्क्बानियों को सौंप दे? जो गुजरात की तरह देश की संपदा देशी-विदेशी कारपोरेटों उर को सौंप कर किसानों-मजदूरों के हाथ में कटोरा थमा दे. देश भर में गुजरात जैसा जनसंहार और बलात्कार को अंजाम दे. एक अहंकारी तानाशाह अब फेसबुक अपनी दर्नाक मौत के पहले देश-दुनिया तबाह करके जाता है. जिसकी भरपाई पीढी-डर पीढी करती है. तानाशाहियों का इतिहास पढ़ लो.
vibha pandey तर्क की तो गुजारिश कर रहा हूँ यह तभे संभव है जब मर्दवादी संस्कारों का कूड़ा दिमाग से निकलेगा. जनता की कमजोर नब्ज पहचान कर ही तानाशाह आततायी जनता पर अत्याचार करता है. मेरा आप सब युवाओं से यही अनुरोध है संकारों का बोझ उतार फेंको और दिमाग इस्तेमाल करो. जेल के सुख का भ्रम तोड़ो. आज-कल में इस मंच पर काफी समय खर्च किया. अब कुछ दिनों मनन करो.
और हाँ मैंने ज्ञानी होने का दावा कभी नहीं किया न हूँ. अल्पज्ञानी के खिताब के लिए शुक्रिया मैं तो दर-असल लगातार सीखने के लिए प्रयासरत एक गाँव का एक अज्ञानी, अति साधारण किन्तु ईमानदार इंसान हूँ जो किसी भी भेदभाव का विरोधी है.
वहां भी लिखता हूँ. जिन लोगों ने दिमाग में ताला लगा लिया है या पति-पिता की इजाज़त से दिमाग चलाती हैं उनका कुछ नहीं हो सकता अनीता जी, लेकिन शब्द बेकार नहीं जाते. कुतर्की-पोंगापंथी बौखलाते हैं तो वह भी एक उपयोग ही हुआ.
Anita Sharma एक लिंग और वर्ग-विभाजित समाज में सभी को कोई भी सार्थक बात अच्छी नहीं लग सकती है इसी लिए हम समतामूलक समाज के हिमायती है मर्दवाद और कारपोरेटवाद को मेरी बातें बुरी लगेंगी ही, न लगें तो तो लगेगा कहने में कुछ कमी रह गयी. आक्रामक भाषा का प्रयोग जानबूझ कर करता हूं जिससे ज्यादा असर पड़े. जैसे पितृसत्ता या पुरुषवाद न लिखकर मैं मर्दवाद लिखता हूं जससे रीति-रिवाज और तथाकथित मर्यादा की दुहाई देकर "मर्दानगी" पर इतराने वालों को ज्यादा तिलमिलाहट हो. सांप्रदायिकता ही तरह जेंडर(मर्दवाद) कोई जीववैज्ञीनिक प्रवृत्ति नहीं है न कोई सार्वभौमिक सत्य, बल्कि सांपर्दायिकता की ही तरह एक विचारधारा है जो नित्य-प्रति की दिनचर्या में हम गढ़ते और पोषते हैं. उदाहरण के लिए किसा लड़कीको शाबासी देने के लिए बेटा कह देते हैं तो वह लड़की भी इसो उसी रऊप में लेती है. किसी लड़के को बेटी कह दो तो सब हंस पड़ेंगे. िसीलिए शब्दों के चुनाव में सजग रहना चाहिए कोई शब्द मूल्यनिरपेक्ष नहीं होता.
Vibha Pandey हर प्रतीक का निहितार्थ होता है. आप लोग भाग्यशाली हैं जो १-२ पीढी बाद पैदा हुईं लेकिन जो अधिकार और आज़ादी आपको प्राप्त है या आपने वर्चस्व के प्रभाव में सेवा भाव से त्याग रखा है वह पिछली पीढ़ियों के सतत संघर्ष का नतीज़ा है. दान वस्तु की जाती है व्यक्ति नहीं.
Sanjai Singh कन्यादान को क्यों श्रेष्ठ मना गया है, बालक दान क्यों नहीं? कन्यादान जिसे करते हैं वह दामाद हुआ. मतदान कन्यादान जैसा है तो उम्मीदवार दामाद जसा हुआ. मान्यवर कोइ कर्मकांड निरपेक्ष नहीं होता. वर्चस्व की विचारधाराएँ रीति-रिवाजों; कर्मकांडों; मिथकों और दृष्टान्तों के माध्यम से वर्चस्व को बरकरार रखता है और जागरूकता हासिल करने के साथ, अधीनस्थ इन रीति-रिवाजों; कर्मकांडों; मिथकों और दृष्टान्तों को तोड़ कर वर्चस्व को समाप्त करने का प्रयास करता है. आज जब लडकिया प्रज्ञा और काम के सारे मिथकों को तोड़ रही हैं और हर क्षेत्र में लडकों पर भारी पद रही हैं तो रीति-रिवाजों और एक पतनशील संस्कृति के ठेकेदार बौखला कर मर्द्वादी (पितृसत्तात्मक) प्रतीकों और रीरेतिरिवाजों को बचाने के प्रयास में लग गए. नारी प्रज्ञा और दावेदारी का जो दरया झूम के उत्था है तिनकों से न टाला जाएगा.
Vibha Pandey मैं समझ सकता हूँ, मान की कमी कोइ नहीं पूरा कर सकता, इस उम्र में भी मुझे भी खलती है मान की कमी. मैं २ बेटियों का फक्र्मंद बाप हूँ,मुझे पिरिवत मित्र मान सकती हैं. वजूद की स्वतन्त्र तलाश आत्म-संबल और आत्म-विस्वास को मजबूत करता है. मैं लड़का था और पितृसत्तात्मक समाज में लड़कों को लडकियों से कम समस्या होती है लेकिन मैं भी किसान घर से निकला था और १-१८ की उम्र में विचारों की स्वतंत्रता की खातिर घर से आर्थिक सम्बन्ध विच्छेद लिया था. घर से बाहर रावनों में ही नहीं रामों से भी खतरा है. लेकिन जो परिस्थियां आयें साहस और आत्मबल से निपटा जा सकता है. मैंने १-२ पीढी बाद पैदा होने से भाग्य की बात इस लिए कह रहा हूँ कि सतत नारी संघर्षों के फलस्वरूप आपकी पीढी की लड़कियों को जो अपेक्षाकृत आजादी और अधिकार हासिल हैं वे हमारी पीढ़ी की लड़कियों को नहीं हासिल थे. पढो-लड़ो-बढ़ो. मेरी शुभकामनाएं.
Anita Sharma कन्या दान महा दान इसलिए माना जाता है कि मर्दवादी संस्कृति में कन्या को मूल्यवान वास्तु मना जाटा है जिसे वेटलिफ्टिंग या तीरंदाजी की काबिलियत से पुरस्कार स्वरुप भी हासिल किया जा सकता है और पुरस्कार पाने वाला अपने भाइयों के साथ मिलकर भी उस वास्तु का उपभोग कर सकता है. अआप का मतलब है कि लोग वोट देने निकलें तो अपने बच्चों का भविष्य जनसंहार और बलात्कार के अस्वमेध रथ पर सवार अम्बानी और अदानी के एक दलाल को सौंप दें जिसने किसानों आदिवासियों को कुचल कर उनकी जमीनी अपने थैलीशाह पालकों अदानियों-अम्क्बानियों को सौंप दे? जो गुजरात की तरह देश की संपदा देशी-विदेशी कारपोरेटों उर को सौंप कर किसानों-मजदूरों के हाथ में कटोरा थमा दे. देश भर में गुजरात जैसा जनसंहार और बलात्कार को अंजाम दे. एक अहंकारी तानाशाह अब फेसबुक अपनी दर्नाक मौत के पहले देश-दुनिया तबाह करके जाता है. जिसकी भरपाई पीढी-डर पीढी करती है. तानाशाहियों का इतिहास पढ़ लो.
vibha pandey तर्क की तो गुजारिश कर रहा हूँ यह तभे संभव है जब मर्दवादी संस्कारों का कूड़ा दिमाग से निकलेगा. जनता की कमजोर नब्ज पहचान कर ही तानाशाह आततायी जनता पर अत्याचार करता है. मेरा आप सब युवाओं से यही अनुरोध है संकारों का बोझ उतार फेंको और दिमाग इस्तेमाल करो. जेल के सुख का भ्रम तोड़ो. आज-कल में इस मंच पर काफी समय खर्च किया. अब कुछ दिनों मनन करो.
और हाँ मैंने ज्ञानी होने का दावा कभी नहीं किया न हूँ. अल्पज्ञानी के खिताब के लिए शुक्रिया मैं तो दर-असल लगातार सीखने के लिए प्रयासरत एक गाँव का एक अज्ञानी, अति साधारण किन्तु ईमानदार इंसान हूँ जो किसी भी भेदभाव का विरोधी है.
वहां भी लिखता हूँ. जिन लोगों ने दिमाग में ताला लगा लिया है या पति-पिता की इजाज़त से दिमाग चलाती हैं उनका कुछ नहीं हो सकता अनीता जी, लेकिन शब्द बेकार नहीं जाते. कुतर्की-पोंगापंथी बौखलाते हैं तो वह भी एक उपयोग ही हुआ.
Anita Sharma एक लिंग और वर्ग-विभाजित समाज में सभी को कोई भी सार्थक बात अच्छी नहीं लग सकती है इसी लिए हम समतामूलक समाज के हिमायती है मर्दवाद और कारपोरेटवाद को मेरी बातें बुरी लगेंगी ही, न लगें तो तो लगेगा कहने में कुछ कमी रह गयी. आक्रामक भाषा का प्रयोग जानबूझ कर करता हूं जिससे ज्यादा असर पड़े. जैसे पितृसत्ता या पुरुषवाद न लिखकर मैं मर्दवाद लिखता हूं जससे रीति-रिवाज और तथाकथित मर्यादा की दुहाई देकर "मर्दानगी" पर इतराने वालों को ज्यादा तिलमिलाहट हो. सांप्रदायिकता ही तरह जेंडर(मर्दवाद) कोई जीववैज्ञीनिक प्रवृत्ति नहीं है न कोई सार्वभौमिक सत्य, बल्कि सांपर्दायिकता की ही तरह एक विचारधारा है जो नित्य-प्रति की दिनचर्या में हम गढ़ते और पोषते हैं. उदाहरण के लिए किसा लड़कीको शाबासी देने के लिए बेटा कह देते हैं तो वह लड़की भी इसो उसी रऊप में लेती है. किसी लड़के को बेटी कह दो तो सब हंस पड़ेंगे. िसीलिए शब्दों के चुनाव में सजग रहना चाहिए कोई शब्द मूल्यनिरपेक्ष नहीं होता.
एक अच्छा शिक्षक हमारे यहाँ तो जो नहीं पढ़ाता है कम आता है घर बुलाता है इलेक्शन लड़वाता है साँस्कृतिक कार्यक्रम करवाता है अखबार में जिसका फोटो छपा हुआ आता है जैसा होता है आपके यहाँ कुछ और होता होगा अब दिल्ली हमारे यहाँ से बहुत दूर भी तो हुई और यू जी सी भी :)
ReplyDeleteitn bhi dur nahin, dekhi men bhi vahi sab hota hai
ReplyDelete