निकलता है कारवां जब थहाने उदधि
डरा सकती नहीं उसे लहरों की परिधि
है ग़र पकड़ मजबूत पतवार पर
रोक लो कस्ती चाहे जिस घाट पर
नहीं आखिरी पड़ाव कोई भी साहिल
एक पड़ाव के बाद अगले का करता दिल
एक नहीं अनेक हैं नई नई मंज़िलें
अथक कारवां ग़र चलता चले
(ईमिः23.04.2014)
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