Tuesday, April 29, 2014

मोदी विमर्श 27

Sumant Bhattacharya  मित्र आपके सरोकारों से सहमत हूं और आप तो इतिहासविद हैं, ऐसे ही संकट के समय फासीवाद का उदय होता है जब फ्रैंको, मुसोलिनी या हिटलर जैसा नरपिशाच महामानव बनकर उद्धारक की भूमिका में उदित होता है और मानवता पर इतने और ऐसे गहरे घाव देता है जो मानव इतिहास का नासूर बन रिसता रहता हैं. मुसोलिनी और हिटलर ने भी मोदी की तरह सबसे पहले अपनी ही पार्टी के दिग्गजों को किनारे किया था. इमर्जेंसी के पहले इंदिरा गांधी-संजय गांधी सिंड्रोम और मोदी सिंड्रोम की तुलना करो तो समझ आ जाएगा जिसने कामराज-मोरारजी-चंद्रभानि गुप्ता जैसे धुरंधरों को धूल चटाकर फासीवादी अभियान की शुरुआत किया जिसकी परिणति आपातकाल में हुई. इंदिरा गांधी प्रिविपर्स के खात्मे और बैंकों के राष्ट्रीयकरण जैसे प्रगतिशाल कार्यों से महामानव बनने और देवकांत बरुआ जैसे भांटों के जरिए भारत का पर्याय होने का प्रचार किया तो मोदी ने जनसंहार और सामूहिक बलात्कार के आयोजन से सांप्रदायिक ध्रुवीकरण करके. इमर्जेंसी में धीरू भाई अंबानी कबाड़ी से अरबपति बना तो मोदी राज में उसके बेटे का साम्राज्य ज्यामितीय श्रृंखला के बढ़ा और मोदी का दोस्त अडानी की संपत्ति 300 करोड़ से बढ़कर 84,000 करोड़ हो गयी. लैंड डील का खुलासा तो आप कर ही चुके हैं. मुज़फ्फरपुर में मोदी-मुलायम की मिलीभगत के बारे में हम लिख चुके हैं. हमें फौरी और दीर्घकालीन दोनों सरोकारों से मुखातिब होना होगा. फौरी खतरा हिंदुत्व मार्का फासीवाद का है. जमानत पर छूया अपराधी अमित शाह बदले की बात करता है तो अपराधी सांसद और भाजपा उम्मीदवार राजकिशोर विरोधियों को पाकिस्तान भेजने की धमकी देता है तो कत्ल और बाहुबल की बदौलत राजनीतिज्ञ बना, सपा-बसपा में शंटिंग करने के बाद आज़मगढ़ का भाजपा सांसद रमाकांत यादव भाजपा के हिंदूसभाई, लंपट सांसद, आदित्यनाथ के साथ मिलकर आज़मगढ़ को आतंकगढ़ घोषित करके मुसलमानों और उनके समर्थकों को कब्रिस्तान या पाकिस्तान भेजने के नारों से माहौल विषाक्त कर रहा है. फौरी खतरा फासीवाद का है दीर्घकालीन सरोकार है यह लूट-खसोट की व्यवस्था बदलना. अभी संविधान की रक्षा प्राथमिकता है जनवादी जनमत तैयार करने के प्रयासों से. Yogesh Pratap Singh  असंयमित भाषा का प्रयोग नहीं करता, आक्रामक शब्दों का प्रयोग जानबूझ कर करता हूं. मानवता के बलात्कारी को नरपिशाच कहना मानवता के हत्यारे, जाहिलों के लिए समुचित शब्दों के अभाव की मजबूरी है. पढ़े-लिखे मोदियाये ज़ाहिलों से मैं लगातार को लगातार चुनौती दे रहा हूं कि सांप्रदायिक विष वमन के अलावा अपने इस महानायक का एक कथ्य या कृत्य उद्धृत करें जिससे यह नरपिशाच उनका आराध्य बन गया. 16 मई की धमकी के अलावा कोई कोई और जवाब नहीं देता. आपके पास हो तो दीजिए. विवेक ही मनुष्य को पशुकुल से अलग करता है, विवेक गिरवी रख चुके लोगों को पशु की बजाय ज़ाहिल कहना भाषा के संयम का नतीजा है. दुर्भाग्य से पढ़े-लिखे ज़ाहिलों का अनुपात अपढ़ों से ज्यादा है.

Dinesh Mishra इतिहास तो संघी अफवाहोें और कुकृत्यों तथा अंबानी-अडानी की दलाली एवं सांप्रदायिक जहालत से बदलेगा? इतिहास बीबही को दर-दर ठोकर खाने को छोड़कर एक शरीफ औरत की पुलिस लगाकर सीटियाबाजी करने वाले ज़ाहिल हत्या- बलात्कार के अधम कृत्य के संचालक को देश का नेता बनाने से बदलेगा. फढ़े-लिखे जाहिलों सा व्यवहार करने पाले संघी बंधु! अगर जरा भी दिमाग है तो उसका इस्तेमाल करके पोस्ट में कही गयी बातों का जवाब देते लेकिन संघी प्रशिक्षण तोते और भेड़ बनाता हैस विवेकशील इंसान नहीं और विवेक ही इंसान को पशुकुल से अलग करता है. 

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