Wednesday, April 23, 2014

लल्ला पुराण 148 (जनहित)

Anupam Khare " It's all to attract the illiterates and specially sub-literates to meet some vicious interest..............."

What vicious interest you found in this poetry on dictatorship. I would have appreciated if you had criticized the points raised in this poem. I do not  anyone as illiterate and sub-illiterate but as educated and uneducated duffers whose world view is fettered by false consciousness.

शासक वर्गीय युग चेतना के विरुद्ध, जनपक्षीय,  जनवादी जनचेतना  का निर्माण और प्रसार विशुद्ध जनहित का काम है, निहित स्वार्थ का नहीं. मैं न तो फीस मांग रहा हूं न वोट. मेरी बातें पढ़ने का आग्रह भी नहीं करता. बान्हे बनिया बजार ना लागत. मैं शिक्षक हूं और मेरी क्लास क्लासरूम तक नहीं सीमित है. मेरा काम वैचारिक रूप से भटके बच्चों को गलती का एहसास कराना और और रास्तों से परिचित कराना है, किसी पर कुछ थोपना नहीं. सब प्रतिभाशाली बच्चे हैं कूप-मंडूक किस्म के समाजीकरण के चलते अफवापजन्य ज्ञान और अनसोची आस्था की आदत से दिमाग संकुचित हो जाता है. मेरा काम उन्हें एहसास कराना है कि उनमें स्वतंत्र चिंतन की क्षमता है, बस दिमाग को सक्रिय करने की आवश्यकता है. यह प्रयास काफी हद तक सफल जा रहा है और अपवाद नियम का सत्यापन करते हैं.

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