Wednesday, April 30, 2014

लोहा ज़ुल्म से


आओ लेते हैं लोहा  ज़ुल्म से मिलकर सभी
भूलकर भेदभाव, मनमुटाव  आपसी अभी
लिए हाथों में हाथ जब चलेंगे साथ साथ
होगा मजबूत बहुत सामूहिकता हाथ
मिलजुल इंसाफ के लिए साथ लड़ने से
होती है आसानी मतभेद दूर करने में
देखकर हमारी जुझारू एकता अखंड
ज़ुल्म के खेमें में मच जाएगा हड़कंप
सुनकर हमारी सामूहिक ललकार
दुश्मन के खेमें में मचेगा हाहाकार
बौखलाहट में करेगा आत्मघाती वार
जाएगा आधी लड़ाई तभी वो हार
होगा दुर्ग-ए-ज़ुल्म पर जब लामबंद वार
ध्वस्त हो जाएगी तब इसकी दीवार
होगें खत्म धरती से सारे अत्याचार
जीतेगा इंसाफ होगी नाइंसाफी की हार
सलाम
(ईमिः30.04.2014)

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