ज़ंग खुद-ब-खुद एक मसला है दर्दनाक
नहीं हो सकती किसी मसले का समाधान
जीतता नहीं कोई होता बस रक्तपात अपरंपार
होती है इन्सानियत की शर्मनाक हार
मौत के घाट उतरती है लाशें उसतरफ की
हो जाती हैं शहीद लाशें इस तरफ की
करता है सरहद पार जब विमर्श
उलट जाता है शहीद-ओ-शैतान का निष्कर्ष
कुर्सी पर आता है जब भी जनता का खतरा
गाता है निज़ाम-ए-ज़र जंगखोरी का मिसरा
रोजी-रोटी को लिए तरसता है जब मजदूर-किसान
छोड़कर हल-ओ-हथौड़ा बन जाता है जवान
सिखाया जाता है उसको नहीं चिंतन उसका काम
मिलता है उसको जान लेने-देने का दाम
युद्धोंमाद
चाहते हैं जंग दोनों तरफ के जंगखोर
करते रहें राज जिससे हरामखोर
है यही शोषण की सभ्यता का इतिहास
गरीब ही गिराते रहे हैं गरीबों की लाश
आओ सुनते हैं शाहिर लुधियानवी की बात
निकालते हैं दिलों से युद्धोन्मादी जज़्बात
दिया था हबीब जालिब ने हमको यह सीख
जंगखोरी मंगाती है जनता से भीख
नहीं हैं खतरे में हमारे घर या वतन
खतरे में होता है लूट-खसोट का शासन
समझेंगे यह बात जब दुनियां के जवान
अपने ही जंगखोरों पर देंगा बंदूकें तान
मिलेगा दुनियां को रक्तपात से छुटकारा
गूंजेगा आकाश में अमन-ओ-चैन का नारा
(ईमिः14.04.2014)
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