Sunday, April 13, 2014

आरक्षण विमर्श

अंबेडकर को भला-बुरा कहने वालों से आग्रह है कि 1936 में लिखी उनकी 100 पेज से कम की पुस्तक, हिंदू जातिव्यस्था का उन्मूलन पढ़ लें, बहुत सी बातें उनके समझ में आ जायेगी. दर-असल पूंजीवाद ने लगता है हिंदू जातिव्यवसल्था से सीख लेकर कामगरों को इतनी श्रेणीबद्ध कोटियों में बांट दिया है कि हर किसी को अपने से नीचे देखने के लिए कोई मिल जाता है.

Kr Madhukar  आरक्षण से जाति नहीं पैदा हुई, अमानवीय जातिव्यवस्था की बिद्रूपताओं को कम और अंततः खत्म करने के लिए सामाजिक न्याय के प्रावधानें की जरूरत पड़ी, इसीलिए एसे सामाजिक न्याय कहते हैं आर्थिक नहीं. एक बात अक्सर नजर-अंदाज कर दी जाती है कि भारत में शोषित जातियां ही शोषित वर्ग भी रही हैं, वर्ग और वर्ण overlap करते हैं. किस प्रतिभा की बात कर रहे हैं? आप अपने तथाकथित प्रतिभाशाली और आपके हिसाब प्रतिभाहीन शिक्षकों की वस्तुगत तुलना कीजिए. कोचिंग के नोट रटकर कितने आईएयस, पीसियस जेल में और जमानत पर हैं?  प्रतिभा एक मिथ है, इम्तहान पासकरके कोई ज्ञानी नहीं हो जाता. हमारे मुल्क में तो 100प्रतिशत आरक्षण हजारों साल रहा, सामाजिक न्याय सत-प्रतिशत आरक्षण की आंशिक भरपाई है. सच कह रहे हैं आरक्षण एक सुधारवादी कदम है, समरस समाज क्रांति की मांग करता है, मुनाफाखोरी के सिद्धांत पर आधारित व्यवस्था के आमूल विनाश के बाद एक ऐसे समाज के निर्माण की मांग करता है जिसमें मनुष्य का मनुष्य द्वारा शोषण असंभव होगा.
theoretically, reservation is meant to help empower the deprived community through appropriate representation in education and other public spaces so that the reservation becomes irrelevant. In Ambedkar's vision it is meant to annihilate the caste not escalate it. 

3 comments:

  1. फिर भी आरक्षण कागजी है कुछ नहीं बदला
    मेरे गाँव का लुहार हथौड़ा लिये वहीं है अभी भी खड़ा ।

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  2. क्योंकि आरक्षण सुधारवादी कदम है

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